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खग्रास


"उपग्रहों को अन्तरिक्ष में छोड़ने के लिए राकेटो का सब से अधिक महत्वपूर्ण स्थान है। राकेटो के ही द्वारा उपग्रह छोड़े जाते है और राकेट ही उन्हें गति प्रदान करते है। राकेट का सिद्धान्त बहुत सरल है। उसमें जो ईंधन होता है, उससे गैसे राकेट के नीचे के थोड़े खुले भाग से निकलती है, जिसके फलस्वरूप राकेट ऊपर को जाता है।"

"अच्छा, राकेट चलता कैसे है?"

"राकेट के भीतर ठोस या तरल ईंधन भर दिया जाता है। राकेट की पूछ का हिस्सा कुछ खुला होता है। गैसे इतनी तीव्र वेग से निकलती है कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जितनी ही तेजी के साथ लपटे राकेट की पूछ से निकलेगी, उतनी ही तेजी से राकेट अन्तरिक्ष में उड़ेगा।" सामान्य वायुयानों और मोटरों में बाहर से वायु खींच कर चलने वाले इंजनों का प्रयोग होता है। परन्तु राकेट में उनसे यह विशेषता है कि उसके भीतर ही प्राण वायु विद्यमान रहती है। इसी से वह वायु रहित अन्तरिक्ष में मजे में चल सकता है। चूँकि राकेट में भीतर जो द्रव और ठोस ईंधन रहता है, उसमें प्राणवायु मौजूद रहती है। अतएव यह ईंधन स्वतः ही जल उठता है। परन्तु अधिकांश तरल ईंधन में प्राणवायु नहीं रहती। जैसे—अलकोहल और पैट्रोल में। इसलिए यह आवश्यक है कि इनके साथ कोई ऐसा तरल पदार्थ भी हो जिसमें प्राणवायु मौजूद रहे। इसलिए तरल ईंधन से युक्त अधिकांश राकेटो में दो द्रव पदार्थ भरे होते हैं, एक तो तरल ईंधन होता है और दूसरा ऐसा द्रव होता है जो उस ईंधन को जलाने में सहायता पहुँचाता है। जलता हुआ ईंधन मोटर के दहन कक्ष में अत्यधिक दबाव उत्पन्न कर देता है। फिर भी यह आवश्यक है कि इस भारी दबाव के बावजूद भी दोनों तरल पदार्थों का प्रवाह दहन कक्ष मे निरन्तर जारी रहता है। कुछ राकेटों की टंकियों में भरे हुए ईंधन को दहन कक्ष पहुँचाने के लिए अत्यधिक दबाव वाली गैसों का उपयोग होता है, तरल ईंधन से चलने वाले राकेटों के ईंधन टैंकों में भी भारी दबाब पड़ता है। अतएव उनका भी मोटरों की भाँति अत्यन्त मजबूत होना आवश्यक है। तरल ईंधन से चलने वाले राकेट के दहन