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पृष्ठ:खग्रास.djvu/२०६

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खग्रास

डब्ल्यू एवेन्स अपनी वेधशाला में एक यन्त्र के निकट बैठें, उसमें प्रवाहित रेडियो तरंगों का गहन अध्ययन कर रहे थें। इसी समय उनके एक सहकारी ने उनसे पूछा—

"क्या सूर्य का मौसम पर असर पड़ता है?"

"निस्संदेह भू-मण्डल की ऋतुओं पर सूर्य का प्रत्यक्ष प्रभाव है। और सूर्य तथा मौसम में सीधा सम्बन्ध है। सूर्य के प्रकाश तथा ताप से आणविक कणों की धारा बड़ी तेजी से पृथ्वी पर पड़ती है। और इसके साथ ही रेडियो-तरंगे, अल्ट्रावायलेट किरणें तथा ब्रह्माण्ड किरणें बहुत बड़ी मात्रा में भूमि पर गिरती है। पृथ्वी के वायु-मण्डल के ऊपरी हिस्से पर आणविक कणों के इस प्रचण्ड प्रहार का क्या प्रभाव है इस बारे में प्रायः हमें कोई जानकारी नहीं है। और यह अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ है।"

"क्या भौतिक शास्त्री, ऋतु विशेषज्ञ तथा रेडियो-इंजीनियर जो ऋतुओं और तुफानों के सम्बन्ध में भविष्यवाणियाँ करते हैं, वे क्या पूर्ण विश्वासनीय होती है?"

"नहीं। परन्तु वे अब इन रहस्यों का पता लगाने में बहुत उत्सुक है। और सूर्य मण्डल के बारे में विस्तृत रूप से पता लगाया जा रहा है। खास कर सूर्य के धब्बों तथा सूर्य की तीव्र ज्वालाओं के बारे में ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करने का यत्न किया जा रहा है।"

"अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष की अवधि जो १८ महीने की अवधि १ जुलाई १९५७ से ३१ दिसम्बर १९५८ तक नियत की गई थी—उसमें क्या कुछ रहस्य था?"

"बेशक, हमें ज्ञात था कि ग्यारह वर्ष की अवधि में इसी समय सूर्य पर धब्बें सबसे अधिक दिखाई देंगे। और संसार के वैज्ञानिकों ने रेडियो द्वारा ध्रुव क्षेत्रों में सूर्य के प्रकाश—प्रकाश के मन्द पड़ने तथा मौसम के होने वाले बड़े और छोटे परिवर्तनों के सम्बन्ध में अनेक सूचनाएँ भेजी है। इस काम के लिए संसार के अनेक क्षेत्रों में अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए