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खग्रास

हमारा मार्ग भी ऐसा मार्ग है जिनका आज तक न तो मनुष्य को ज्ञान था, न कोई वहाँ जाने का आज तक साहस कर सका था।"

सब लोग साँस रोक कर डाक्टर रेवेल की बातें सुन रहे थें। डाक्टर के चेहरे पर जो गम्भीर रेखाएँ उभर आई थी, उन्हें देखकर किसी को प्रश्न करने का भी साहस नहीं हुआ। डाक्टर ने कहा—

"समुद्र में जलगत नदियाँ बहती हैं, इस तथ्य से बहुत कम व्यक्ति परिचित हैं। अब २७ देशों के समुद्र विशेषज्ञ ७० जहाजों में समुद्रों की जाँच पड़ताल कर रहे हैं। ये लोग समुद्रों में, सैकड़ों द्वीपों के निर्जन तटवर्ती किनारों पर अथवा उत्तरी ध्रुव की सरकती हुई हिमचोटियों पर दो प्रमुख समस्याओं का समाधान करने में व्यस्त हैं। इनके सामने अनेक गुरुतर कार्य है। प्रथम तो समुद्री स्तर की पैमाइश करनी है। संसार के सभी भागों में समुद्रों में आने-जाने वाले ज्वार भाटो के सम्बन्ध में समुद्री पचाङ्ग तैयार करना उनका उद्देश्य है। सन् १९५५ में कैलिफार्निया के स्क्रिप्स इन्स्टीट्यूशन आव ओसनोग्राफी के वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया था कि ग्रीष्म ऋतु में, उत्तरी तथा दक्षिणी दोनों प्रशान्त सागरो में, समुद्र-स्तर कुछ ऊपर उठ जाता है। अब देखना यह है कि क्या यह भूमध्य-रेखा की ओर जल की सचमुच ही गति है, अथवा यह केवल ग्रीष्मकालिक उष्णता और समुद्री जल के विस्तार का परिणाम है। हम अब उन गहरी समुद्री तरंगों के सम्बन्ध में अत्यन्त रहस्य और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने की चेष्टा कर रहे थें।" इतना कह कर डाक्टर रेवेल कुछ रुके। फिर उन्होंने कहना शुरू किया—"जलगत नदियाँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव क्षेत्रों में उस समय बहती है, जब जल जम जाता है। वे पीछे समुद्र के पेंदे के साथ-साथ नीचे चली जाती हैं और धीरे-धीरे भूमध्य रेखा की ओर बहने लगती हैं। और वहाँ पहुँच कर वे अन्त में समुद्र के ऊपरी स्तर की ओर उठने लगती हैं।"

"क्या आप यह बता सकते हैं कि उन गहरी नदियों को ध्रुवों से भूमध्य रेखा तक पहुँचने में कितना समय लगता है?" एक साथी ने पूछा।