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खग्रास

की लहर दौड़ गई। उपग्रह को अन्तरिक्ष में पहुँचाने वाले राकेट-यान विशेषज्ञ डाक्टर वर्नर-वानब्रान खुशी से बगले बजा रहे थें और कह रहे थें कि बाह्य अन्तरिक्ष पर अपनी प्रभुसत्ता की स्थापना का यह हमारा श्रीगणेश है। ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री मैकमिलन इन दिनों आस्ट्रेलिया का दौरा कर रहे थें। उन्होंने वहीं से बधाई के सन्देश भेजें। पोप ने भी अपना आशीर्वाद दिया। इस समय एक्सप्लोरर से निरन्तर संकेत प्राप्त हो रहे थें और वेनगार्ड नियंत्रण केन्द्र में उनके आधार पर दबाव और तापमान की सूचनायें प्राप्त हो रही थी। इस समय यह उपग्रह आकाश में एक हजार मील ऊपर १८ हजार मील प्रति घण्टे की चाल के घूम रहा था।

इस उपग्रह में "हाइडाइन" नामक ईंधन पहिली बार ही काम में लाया गया था। उपग्रह में लगे हुए दो ट्रान्समीटर निरन्तर सूचनायें दे रहे थें। और अब ब्रह्माण्ड की धूल का घर्षण और ब्रह्माण्ड किरणों की महत्वपूर्ण सूचनायें निरन्तर आ रही थी। अभी संसार इस उपग्रह की सूचनाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित कर ही रहा था कि अमेरिका ने विश्व को सूचना दी कि वह दूसरे जुपीटर प्रक्षेपणास्त्र को छोड़ने की तैयारी कर रहा है। अमरीकी वैज्ञानिक कह रहे थें कि अब अन्तरिक्ष मण्डल में मनुष्य के देर तक यात्रा करने की स्थिति में पहुँच चुके है। और जब हमारा राकेट यान एक्स १५ उड़ेगा तो वह मनुष्य युक्त उपग्रह से केवल एक ही कदम पीछे रह जायेगा। एक्स १५ राकेट सौ मील से अधिक ऊँचाई पर एकमील प्रति सैकेण्ड की रफ्तार से उड़ेगा। यह वायुयान नहीं—अन्तरिक्ष यान होगा। तथा इसके बाद ही मनुष्य को लेकर हमारा उपग्रह कक्षा पर स्थापित हो जायगा। एक्सप्लोरर से एक महत्वपूर्ण सूचना यह प्राप्त हो रही थी कि उच्चतर अन्तरिक्ष में ब्रह्माण्ड किरणों से होने वाला विकिरण भू-पृष्ठ पर की अपेक्षा १२ गुना से अधिक नहीं है। अब तक वैज्ञानिक यह समझते थें कि भूमण्डल के ऊपर ब्रह्माण्ड किरणों का विकिरण इतना जबर्दस्त होगा कि उसमें मनुष्य अथवा कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकेगा।

जिस यन्त्र की सहायता से इस उपग्रह की अपनी कक्षा में स्थापना की गई, वह सेना द्वारा विशेष रूप से निर्मिति जुपीटर-सी नामी राकेट था। यह