यद्यपि कोई भी वैज्ञानिक भविष्य वाणी करने के लिए तैयार नहीं था कि यह कृत्रिम उपग्रह कब तक अपने पथ पर बना रहेगा, फिर भी मेजर-जनरल जौन बी॰ मैडरियाज का यह अनुमान था कि यह १० वर्ष तक पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रहेगा।
पैसोडीना (कैलिफार्निया) में सेना की जेट चालन-अनुसन्धानशाला के निर्देशक डा॰ विलियम एच॰ पिकरिंग का कथन था कि कृत्रिम उपग्रह का पथ ठीक वैसा ही है, जैसा कि इसके सम्बन्ध में इरादा किया गया था। यदि इसमें कोई परिवर्तन हुआ है, तो यही कि अनुमान से इसकी ऊँचाई कुछ अधिक हो गई है। श्री पिकरिंग ने ऊपरी दौरों के राकेट तथा कृत्रिम उपग्रह का संयोजन किया था।
आयोवा विश्वविद्यालय के डा॰ जेम्स वान ऐलन, जिन्होंने कृत्रिम उपग्रह को यन्त्रों से सज्जित किया था, इसे देख कर प्रसन्न थें। "एक्सप्लोरर" की स्थापना का मुख्य वैज्ञानिक उद्देश्य पृथ्वी से विभिन्न दूरियों पर ब्रह्माण्ड किरणों का अध्ययन है। यदि ग्रहपथ पृथ्वी से एक सी दूरी पर होता, तो इस उद्देश्य में पूरी सफलता नहीं मिलती।
स्मिथसोनियन वेधशाला के अध्यक्ष डा॰ फ्रेड ह्विपल का कहना था कि अत्यधिक अनुकूल स्थानों में बने हुए, अच्छी देखने की शक्ति रखने वाले लोग ही कृत्रिम उपग्रह को आँखों से देख सकते हैं। यह उस समय सम्भव है, जब कि ग्रहपथ पृथ्वी के बहुत निकट हो। ग्रहपथ पृथ्वी से दूर होने पर यन्त्रों की सहायता के बिना कृत्रिम उपग्रह को देखना सम्भव नहीं।
पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमने वाले कृत्रिम उपग्रह की, अपने खाली राकेट सहित कुल लम्बाई ८० इंच की थी तथा व्यास ६ इंच का था। इसका वजन ३०.८ पौण्ड था। इसमें कृत्रिम उपग्रह का वजन १८.१३ पौण्ड था, जिसमें ७५ पौण्ड का उसका खोल था। शेष लगभग ११ पौण्ड के यन्त्र उसमें विद्यमान थें। इस वजन की तुलना स्पूतनिक प्रथम तथा स्पूतनिक द्वितीय से नहीं की जा सकती थी। उनका वजन क्रमश १८४ पौण्ड और १,१२० पौण्ड था। स्पूतनिक द्वितीय में एक कुत्ता भी था। फिर भी अमेरिकी कृत्रिम उपग्रह