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खग्रास

में इतने हल्के और इतने बढ़िया यन्त्र थें कि वह अपने रूसी प्रतिद्वन्द्वियों के समान अन्तरिक्ष की सूचनाएँ प्रदान करने में समर्थ था।

ये यन्त्र तीन प्रकार की सूचनाएँ जुटाने के लिए रखे गए हैं १—ब्रह्माण्ड किरणों की सूचनाएँ, २—उल्का पिण्डो की सूचनाएँ, ३—तापमान। ब्रह्माण्ड किरणों के मापने के लिए गाइगर म्यूलर नामी यन्त्र इसमें रखा गया है। ३२ किरणों के प्रवेश के बाद यह तुरन्त इस बात का संकेत पृथ्वी पर प्रेषित कर देता है। कृत्रिम उपग्रह छोड़ने के साथ ही इन यन्त्रों ने अपना कार्य शुरू कर दिया था।

उल्का-कणों या धूल की पैमाइश दो प्रकार से की जा रही थी। जब ये उल्का-कण उपग्रह के खोल पर चोट करते थें तब इस आवाज को उपग्रह में लगा ध्वनि-विस्तारक यन्त्र पकड़ लेता था। इस प्रकार इन उल्का-कणों की शक्ति का पता चलता था। उल्का-कणों की पैमाइश के लिए बहुत बारीक तारों से युक्त १२ छड़ों का एक सैट लगा हुआ था। जब कोई एक इंच के २०० वे हिम्से से बड़ा उल्काकण किसी तार पर चोट करता था, तब यह टूट जाती थी और तुरन्त हानि की सूचना देती थी। यह यन्त्र हवाई सेना के कैम्ब्रिज अनुसन्धान केन्द्र ने तैयार किया था।

विभिन्न प्रकार के थर्मामीटरों से उपग्रह के ४ स्थानों में तापमान नोट किए जा रहे थें। दो कृत्रिम उपग्रह की खोल में आगे और पीछे की ओर "फिट" थें। एक कृत्रिम उपग्रह के अगले भाग में तथा एक यन्त्रों के पास रखा गया था। इन चारों थर्मामीटरों से जो सूचनाएँ प्राप्त हो रही थी, उनसे अन्तरिक्ष सम्बन्धी यान तैयार करने में ऐसी सहायता मिलनी सम्भव थी जिससे इन यात्राओं में मनुष्य को तापमान सम्बन्धी कोई कठिनाई नहीं हो।

प्राप्त समस्त सूचनाएँ दो ट्रांसमीटरों से पृथ्वी पर भेजी जा रही थी। इनमें से शक्तिशाली ट्रांसमीटर १०८.०३ मैगासाइकल पर सूचनाएँ प्रसारित करता था जो दो या तीन सप्ताह तक कार्य करता रहेगा। दूसरा कम शक्तिशाली ट्रान्समीटर १०८ मैगासाइकल पर सूचनाएँ प्रसारित कर रहा था जो