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खग्रास

दो या तीन मास तक इसी प्रकार सूचनाएँ प्रसारित करता रहेगा। इन सूचनाओं को किस प्रकार समझा जा सकता है, इसकी अग्रिम सूचना समस्त दिलचस्पी रखने वाले लोगों को इससे पूर्व ही मुफ्त दी जा चुकी थी। अमेरिकी कृत्रिम उपग्रह वास्तव में समस्त संसार को प्रत्यक्ष सूचनाएँ प्रदान कर रहा था।

यदि, अमेरिकी कृत्रिम उपग्रह के जितनी देर अन्तरिक्ष में बने रहने की आशा थी उतनी देर वह वहाँ स्थापित रहा, तो उसकी गति के धीमा पड़ जाने पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की अनियमितता का उससे पता चल सकने की आशा थी। उसके रेडियो-संकेतों के मन्द और तीव्र हो जाने से हवा में अयनिक सतहों का पता चल रहा था। वैज्ञानिकों का खयाल था कि जब यह पृथ्वी की ओर थोड़ा झुकना शुरू करेगा, तो शक्ति के कम होने से उच्च आकाशमण्डल में विद्यमान हवा की घनता का पता चल सकेगा। इससे यह भी पता लग सकेगा कि विभिन्न स्थानों की वास्तविक दूरियाँ कितनी है। यदि इसमें रखे हुए यन्त्र अन्त तक सही रहें, तो इस प्रश्न का भी उत्तर मिल जाएगा कि क्या समस्त महाद्वीप पहले जुड़े हुए थें और अब एक दूसरे से पृथक होते चले जा रहे हैं।

इस कृत्रिम उपग्रह की स्थापना में सबसे बड़ी बात यह थी कि इसकी सफलता का कारण कोई नए और अद्भुत यन्त्र नहीं। "रेडस्टोन" का "जुपीटर-सी" संस्करण या घूमने वाले ढोल जैसे राकेट कोई नए यन्त्र नहीं थें।

डा॰ वर्नर जौन ब्रौन के कथनानुसार इन्हीं यन्त्रों की सहायता से ५० प्रतिशत अधिक वजन कक्षा में स्थापित किया जा सकता था। उनका यह भी कहना था कि "रेडस्टोन" राकेट अपेक्षाकृत छोटा राकेट था। इससे भी बड़े एटलस, थोर इत्यादि राकेट हैं। ये अन्तरिक्ष में कृत्रिम उपग्रहों को और भी ऊँचे स्थापित कर सकते हैं। ये चाँद के चारों ओर भी उपग्रह स्थापित कर सकते हैं।