"हाँ, इसके लिए हम प्लासमा गैस का उपयोग करते है। यह हम इस प्रकार करते है कि उद्जन गैस मे एक शक्तिशाली विद्युत् धारा प्रवाहित करते है। इससे उद्जन गैस के परमाणुओ की न्यष्टियाँ चारो ओर से विद्युत कणो से प्रथक् हो जाती है। और वह आयनीकृत गैस बन जाती है, उसे हम एक गोलाकार नली मे रखते है।"
"ठीक है प्रोफेसर, ब्रिटेन भी इस दिशा मे कुछ कर रहा है। और अमेरिका भी शायद चुप नही बैठा है।" डाक्टर भामा ने कुछ शकित से स्वर मे कहा।"
"हाॅ, हॉ, गत सप्ताह ब्रिटेन ने घोषणा की थी कि उसने उद्जन शक्ति के सदुपयोग का तरीका निकाल लिया है।"
"क्या आपको इस सम्बन्ध मे कुछ सूचनाएँ मिली है?"
"अत्यन्त महत्वपूर्ण सूचनाएँ है डा॰ भामा। ब्रिटेन ने ऐसी प्रक्रिया प्राप्त करली है कि वह अति शीघ्र पचास लाख डिगरी सैन्टीग्रेड ताप उत्पन्न कर लेगा।"
"क्या इसके कुछ आधार भी है?" डाक्टर भामा ने गम्भीर होकर कहा।
"हाॅ, हॉ, मै निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि ब्रिटेन मे एक ऐसा यन्त्र बन चुका है जिसमे ड्यूटीरियम की न्यष्टियॉ एक दूसरे से टकराकर द्रवित हो जाती है। और मिल कर भारी न्यष्टियाॅ बनाती है। जिन से भारी शक्ति निकलती है। यद्यपि अभी ठीक-ठीक नही कह सकते, फिर भी ब्रिटेन शीघ्र ही ससार मे घोषित कर सकेगा कि वह पचास लाख डिगरी सैण्टीग्रेड ताप उत्पन्न कर सकता है।"
डाक्टर भामा कुछ देर चुप रहे। फिर उन्होने आहिस्ता से पूछा— "क्या आप यह ठीक कह रहे है प्रोफेसर?"
"मैने वह यन्त्र देखा है डा॰ भामा, इसमे मुगालता नही है।"
डाक्टर भामा ने स्थिर स्वर मे कहा—"तो इसमे आश्चर्य क्या