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पृष्ठ:खग्रास.djvu/२५२

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खग्रास

है प्रोफेसर, अभी तो हमे सूर्य के बराबर ताप उत्पन्न करना है। और यह हम समुद्र के पानी से कर सकेगे। समुद्र ईधन का भण्डार है।"

"तो डाक्टर भामा, प्रतिज्ञा कीजिए कि हम-आप मिल कर ही यह प्रयोग आगे बढाएगे। अब देखना यह है कि हम मे से किसे दूसरे को मुबारकवादी देने का सौभाग्य प्राप्त होता है।"

इतना कह कर प्रोफेसर उठ खडे हुए। उन्होने डाक्टर भामा से हाथ मिलाया। और इस प्रकार यह गुप्त मन्त्रणा खत्म हुई।

गूढ पुरुष

अलमोडा के आसपास के जगल मे कुछ दिन से एक रहस्यपूर्ण मनुष्य जब तब उधर आते-जाते आदमियो को दीख जाता है। इस मनुष्य को इधर आए दो बरस हो गए है। पर वह बस्ती और आदमियो से दूर रहता है। किसी आदमी से बात नहीं करता। किसी के पास नही जाता। न कोई उसके पास जाता है। इस पुरुष का कद लम्बा, शरीर गठित और मजबूत है। आयु साठ से भी ऊपर होगी। उसकी खिचडी डाढी मे अभी भी बहुत बाल काले है। सिर के बाल भी अधिकाश काले है। ऑखे उसकी बडी तेज है, कोई व्यक्ति आँख मिला कर उससे बात नही कर सकता। वह भी आँख उठा कर किसी की ओर नही देखता। वह बडी चाल से चलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उसका शरीर लोहे का बना हुआ है। डील-डौल उसका बहुत विशाल है। अपने शरीर पर वह मोटी ऊन का एक ढीला टखनो तक लटकता कुरता पहनता है। और उसके हाथ मे पहाडी लकडी का एक मोटा सोटा होता है। उसकी कलाई इस कदर मजबूत है कि वह उस सोटे से एक दुर्दान्त साड या सिह को भी मार गिरा सकता है। उसकी आँखो से एक अद्भुत चमक निकलती है। और उसकी मोटी भौहो के बडे-बडे बाल झुक कर उसके पलको तक आ जाते है। दात भी उसके बहुत मजबूत है। वह हमेशा नगे सिर रहता है। और उसके सिर के बडे-बडे बाल कुछ सफेद और कुछ काले धूप मे चमकते हुए उसके ललाट पर भव्य प्रतीत होते है। उसकी ठोड़ी मोटी हे, और नाक नुकीली, परन्तु कोमल है।