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पृष्ठ:खग्रास.djvu/२५६

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खग्रास

यहाँ से उसका बंगला साफ दीख पडता हे। चरन ओर रमा की बात सुनकर तिवारी का कौतूहल भी बढ गया है। अब कभी-कभी वह इस आदमी की चर्चा खोद-खोद कर करते है। अकेले होते है तो पाराम कुर्सी पर पडे बडी देर तक सामने दूर पहाडी पर उसके बंगले को एकटक देखते रहते है। एक दो बार उधर शिकार को भी गए है। पर अभी उसे देखा नहीं है। पर निरन्तर उसकी चर्चा से तिवारी की जिज्ञासा वढती जाती है। वह बहुधा चरन से या दिलीप से उस गूढ पुरुष की बाते करते है।

बंगले में

दिलीप ने कहा—"अाज मगलवार है। वह आज जरूर बाजार मे आएगा।"

"तो चलो, आज जरा उसे नजदीक से देखे। सम्भव हो तो बातचीत भी करे।"

"क्या बातचीत करोगे उससे। मुझे तो वह सिडी आदमी मालूम होता है।"

"क्या तुमने कभी उससे बात की है?"

"नही। लेकिन देखा जरूर है।"

"चरन कहता है—वह कीमियागर है। सोना बनाता है।"

"खाक सोना बनाता है। ऐसी गप्पे तो भारत मे आम है।"

"लेकिन चरन कहता है—उसके एक रिश्तेदार को उसने सोना दिया है।"

"तो चरन से कहो—वह भी उससे सोना ले आए। और मजा करे। माली की नौकरी करने की उसे क्या जरूरत है?"

"लेकिन मेरे मन मे उस आदमी के लिए कौतूहल है।"

"तुम भी कुछ कम खव्ती नही हो।"

"जी हाँ, लेकिन मै उससे बात करना चाहता हूँ।"

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