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खग्रास


"यह क्यो नही कहते, चेला बन कर सोना बनाना सीखना चाहता हूँ।"

"यदि वह यह विद्या जानता है, तो जरूर सीखूगा।"

"अच्छा ही है। फिर नौकरी धन्धा करने से निजात मिलेगी। बस शिकार करना और सोना बनाना।"

इसी समय चरन लम्बे-लम्बे डग भरता आया—उसने कहा—'मालिक, वह आ रहा है, देखिए, कितना झपाटे से चला आ रहा है।"

"मैं कहता न था कि आज वह पाएगा।" दिलीप ने कहा—

तिवारी ध्यान से उसकी ओर देखने लगा। इस समय वह अपने बंगले और बस्ती के बीच की पहाडियो मे था। वह अल्मोड के बाजार की ओर असाधारण तेजी से जा रहा था। उन्होने कहा–"चरन, क्या कभी तूने उससे बाते की है?"

"वह बात किसी से नही करता मालिक।"

"क्या तू कभी उस बंगले के पास गया है?"

"नही मालिक, वहाँ कौन जा सकता है। वह सिद्ध पुरुष है। भूत प्रेत वैतालो का स्वामी है। वहाँ जाने से न जाने क्या हो जाय।"

"क्या तुझे मालूम है कि उसने किसी को नुकसान पहुँचाया है?"

"ना, यह तो मैंने नही सुना। परतु जो कोई उस बंगले के पास जाना चाहता है या उसके नजदीक जाता है, वह उसे हाथ के इशारे से दूर ही भगा देता है।"

"फिर वह लोगो को सोना कैसे देता है?"

"वह जिसे देना चाहता है, आप ही उसके पास आकर दे जाता है। लेकिन बोलता-चालता नही है।"

"क्या तू कह सकता है कि वह वहाँ अकेला ही रहता है?"

"मैं क्या जानूं मालिक, पर इधर मैंने कभी किसी को आते-जाते नही देखा। जो चरवाहे उधर जाते हैं, वे भी बंगले से दूर ही दूर रहते है। उनका