"आपका यह कहना सत्य है। इसमे सन्देह नही कि अपनी विदेश नीति द्वारा भारत दूसरे राष्ट्रो को अपना मित्र और शुभचिन्तक बनाने मे सफल हुआ है। परन्तु आप क्या समझती है कि भारत और दूसरे देश जो तटस्थ नीति अपना रहे है, वे एक तीसरे गुट का सर्जन कर रहे है?"
"आप भारत और उसकी नीति से सहमत देशो की शक्ति को तटस्थ नीति क्यो कहते है? वास्तव मे भारत और उसके सह-अस्तित्व के सिद्धान्त वाले देश तटस्थ नही है। इन देशो का दृष्टिकोण नकारात्मक न होकर रचनात्मक है। वे विश्व शांति के प्रसार तथा समस्त राष्ट्रो से मैत्री भाव बनाने और गुटबन्दी से दूर रहने की नीति पर चल रहे है। ये देश भारत के नेतृत्व मे मैत्री बन्धन तथा समस्त मानव समुदाय के लिए हितकार वातावरण तैयार करने और विश्व शांति बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है तथा भारत रचनात्मक शान्ति-सह्योग का प्रसार करने मे संसार का नेतृत्व कर रहा है। इसी से विश्व की आँख उस पर लगी है। भयत्रस्त जातियाँ आशा से उसकी ओर देख रही है और रूस और अमेरिका जैसी दुर्द्धर्ष शक्तियाँ, जो विध्वसक सामर्थ्य की चरमसीमा पर पहुंच कर संसार के लिए त्रास बनती जा रही थी, भारत की इस शान्ति की शक्ति की छत्रछाया मे आने को आज लालायित है।"
"रूस और अमेरिका ने आज अन्तरिक्ष विजय का अभूतपूर्व चमत्कार दिखा कर अपनी अपरिसीम शक्ति का प्रदर्शन किया है, आप क्या उसकी अपेक्षा भी भारत की शान्ति शक्ति को महान् मानती हैं?"
"मनुष्य के समक्ष जो सर्वोपरि वस्तु है, वह जीवन है। जीवन की शक्ति सबसे महत्वपूर्ण है। शक्ति हमे भोजन और ईधन से मिलती है। शक्ति के नए साधन परमाणु-सौर व समुद्री शक्तियाँ है। भूमि और जल मानव के भोजन के लिए अब भी मूल साधन है। यह निश्चय है कि अगले ४० सालो मे विश्व की जनसख्या अब से दुगुनी हो जायगी। १९६८ मे यह ५ अरब हो जायगी। आज की स्थिति यह है कि विश्व की आधी जनसख्या भूखी रहती है, यद्यपि संसार के दो-तिहाई आदमी खाद्य उत्पादन मे लगे हुए है। आज