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खग्रास

रूस और अमेरिका से भी बढकर संहारक शस्त्रास्त्रो से भर दें। और ब्रह्माण्ड को भेदने वाले प्रक्षेपणास्त्र भारत सरकार के लिए तैयार करे।"

"हाँ, मेरा यही अभिप्राय है।"

"स्वाभाविक ही है, क्योकि आप भी उसी मूढता मे बद्ध है। परन्तु पापा तो विज्ञान को मनुष्य के लिए मृत्युदूत नही बनाना चाहते। वे तो विज्ञान को मानव मात्र के लिए मुक्तिदूत बनाना चाहते है।"

"फिर भी वे भारत को एक तीसरी महाशक्ति मे बदल सकते है।"

"देखिए, वैज्ञानिक और साहित्यिक कभी किसी एक देश के हिताहित को नहीं देखते। मानव-कल्याण ही उनका ध्रुव ध्येय होता है। फिर भारत तो स्वय ही एक तीसरी शक्ति बन गया है।"

"तीसरी शक्ति कैसे?"

"शान्ति की शक्ति। सारे संसार का ध्यान इस शक्ति पर केन्द्रित हो रहा है और ससार के जननायको की नजर मे भारत का स्थान बहुत ऊँचा है।"

"परन्तु इसका कारण क्या भारत की प्राचीन संस्कृति नही है।"

"सस्कृति भी है। परन्तु देश की वर्तमान आर्थिक और उद्योग सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने के सफल प्रयत्न भी उसके कारण है। परन्तु सबसे बडा कारण भारत की परराष्ट्र नीति है जिसने विदेशो में भारत के प्रति सद्भावना का मधुर वातावरण उत्पन्न कर दिया है। आज बहुत से राष्ट्र भारत को शान्ति का स्तम्भ मानते है। उन्हे विश्वास है कि भारत सब देशो की प्रगति और स्वाधीनता का इच्छुक है। उसने अपनी स्वाधीनता के अल्पकालीन समय मे यह प्रमाणित किया है कि यदि सहिष्णुता और पारस्परिक सद्भावना से काम लिया जाय तो सब विभिन्न विचार धाराएँ साथ-साथ जीवित रह सकती है। यह कितनी बड़ी बात है कि भारत सभी समस्याओ को लोकतन्त्रात्मक विधियो से सुलझाने की पद्धति अपना रहा है।"