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खग्रास

तिवारी अपनी राइफल और सब सामान भी वही छोड गए है। अतः शिकार को या किसी खतरनाक काम के लिए वह नही गए है। फिर पुर्जा भी छोड गए है जिसमे आश्वासन है। इन सब बातो पर विचार करके वह उद्विग्न मन से तमाम दिन घर पर ही बैठे तिवारी की प्रतीक्षा करते रहे।

परन्तु सूर्यास्त होने पर भी तिवारी लौट कर नही आए तो उनकी अधीरता बहुत बढ गई। क्या करना चाहिये यह कुछ भी उनकी समझ मे न आ रहा था। अनेक प्रकार के सकल्प विकल्प उनके मन मे उठ रहे थे। कभी वे सोचते तिवारी किसी विपत्ति मे फँस गया है। कभी वह उनकी उस विक्षिप्त की-सी अवस्था पर विचार करते जबकि वे लौटे थे। फिर क्या कारण है कि वह अपने साथ राइफल भी नही ले गए। अकस्मात् एक नया विचार उनके मन मे उत्पन्न हुआ। कही यह कोई प्रेम का मामला तो नही है। अल्मोडा ऐसी घटनाओ का केन्द्र हो सकता है। इस बात पर वह जितना विचार करते गए, इसी की अधिक सम्भावना उन्हे प्रतीत होती गई। पर इस सम्बन्ध मे रमा से कुछ कहना उन्होने ठीक न समझा। अलबत्ता उनका मन कुछ आश्वस्त अवश्य हुआ। तिवारी युवक है, अविवाहित है। यद्यपि वह दृढ चरित्र का युवक है, परन्तु ऐसी घटना होना असम्भव नही है।

सूर्य अस्त हो रहा था। पहाडियो की काली छायाएँ घाटी मे फैली हुई थी। दिलीपकुमार बडी बेचैनी से तिवारी की प्रतीक्षा कर रहे थे, इसी समय तिवारी धीरे-धीरे बंगले के कम्पाउण्ड मे प्रविष्ट हुए। उन्हे देखते ही दिलीपकुमार ने बडी बेसब्री से आगे बढ कर कहा—"भाई, तिवारी, तुमने तो परेशान कर दिया हमको।"

तिवारी ने मुस्करा कर कहा—"क्यो? परेशान होने की क्या बात थी? मैं तो पुर्जा छोड ही गया था।"

"लेकिन भलेमानस, कह कर तो जाते।"

"लो भला, व्यर्थ मे आधी रात आपको जगाता। यह भी भला कोई भलेमानुसो का काम है?"