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खग्रास


"तो आधी रात को चुपचाप घर से निकल जाना भलेमानुसो का काम है?"

"क्यो? पहाड मे तो लोग आते ही घूमने-फिरने के लिए है।" इस समय तिवारी का मूड अच्छा था। यह देखकर आश्वस्त होकर दिलीपकुमार ने कहा—"खैर, कपडे बदल कर हाथ मुंह धो लो। चाय तैयार है। खाना भी बस आध घण्टे मे तैयार हुआ जाता है।"

बातचीत की भनक सुनकर रमा भी चली आई थी। पर उन्हे किसी प्रश्न का अवसर न देकर तिवारी अपने कमरे मे चले गए। दिलीपकुमार की यह धारणा अब और भी दृढबद्ध हो गई कि जरूर कही प्रेम का मामला उठ खडा हुआ है। यद्यपि यह भी उनके लिए चिन्ता की बात थी, फिर भी वे पहले की अपेक्षा आश्वस्त थे। वे नही चाहते थे कि रमा से इस सन्देह की बात कहे। रमा ने जब पूछा कि दिन भर ये कहाँ रहे, तो दिलीपकुमार ने हँसकर टाल दिया। परन्तु एक नई चिन्ता ने उनके दिल मे घर कर लिया।

प्रतिभा की बाते

डेरे से चुपचाप निकल कर जब तिवारी उस बगले पर पहुंचे तो उन्होने देखा कि प्रतिभा फूलो को सीच रही है। तिवारी को देखते ही उसने हँसकर कहा—"क्यो? इतनी जल्दी चले आए?"

"मैने तो ये क्षण बडी ही बेसब्री से बिताए। पापा के पुण्य-दर्शन करने को मै वास्तव में बहुत ही अधीर हो रहा हूँ।"

"किन्तु अभी तो आप उनसे एक घण्टा बाद मिल सकते है। इस समय वे अपने मित्र विक्टर अम्बारत्सीमियान से अत्यन्त अगत्य की बातें कर रहे है।"

"ये विक्टर अम्बारत्सीमियान कौन है?"

"ओह, वे रूस के बडे भारी ज्योतिषाचार्य है। वे प्रार्मोनिया विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष है। जो रूस भर में सबसे बडी वेधशाला है, जिसमे संसार की सबसे बडी रेडियो दूरबीन लगी है ।"