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पृष्ठ:खग्रास.djvu/२९६

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खग्रास


संक्षेप मे, यदि कहे, तो भू-भौतिक शास्त्र, ज्योतिर्विज्ञान तथा अन्य विज्ञानो के सहयोग से जीव-रसायनशास्त्र तथा जीवाणु-विज्ञान द्वारा हम निर्जीव और सजीव के बीच के इस अन्तर की समाप्ति कर सकते है। हमे यह बात कहने मे कोई सन्देह नही कि उचित रासायनिक और भौतिक स्थिति तथा वातावरण के होने पर किसी भी ग्रह मे जीव का प्रादुर्भाव हो सकता है तथा यह जीवन अनुकूल परिस्थितियो मे कायम भी रहेगा।"

"वृहत्-व्यूहाणुओ सम्बन्धी जो अनुसन्धान हो रहे है, उनसे क्या इस प्रश्न पर प्रकाश पडेगा?"

"हाँ, वैज्ञानिको का चिरकाल से इस प्रकार का अनुमान था। गत कुछ वर्षों मे वृहत्-व्यूहाणुनो के क्षेत्र मे जो अनेक अनुसन्धान किए गये है, उनके फलस्वरूप यह बात आवश्यक नही रह गई है कि जीव के प्रादुर्भाव के किसी दैवी या चमत्कार पूर्ण कारण को स्वीकार किया जाय। ज्योतिर्विज्ञान के प्रदर्शन के फलस्वरूप असंख्य नक्षत्र हमारे सम्मुख है। फलस्वरूप जीवन की उपस्थिति की भी असख्य सम्भावनाएँ हमारे सम्मुख उपस्थित है। इससे स्वाभाविक रूप में यह विश्वास होता है कि असंख्य ग्रहो को जीव-रासायनिक विकास के चिरकाल से विविध प्रकार के अनुभव प्राप्त है। हजारो किस्म के भौतिक पशुओ मे मानसिक क्रिया का विकास होते देखा गया है। इसी को बुद्धि, विवेक या समझदारी कहते है। यह एक प्राकृतिक वस्तु है। कोई भी उच्च किस्म का प्राणी उच्च मानसिक शक्ति से शून्य नही। जीवन युक्त अन्य ग्रहो मे भी स्थिति इससे विपरीत नही हो सकती।"

इतना कहने पर गूढ पुरुष की दृष्टि कुछ चंचल हुई। फिर कुछ मन्द स्वर मे उन्होने कहा—"इस बात मे विश्वास का कोई कारण नही कि अन्य स्थानो मे विद्यमान मानसिक दृष्टि से प्रबुद्ध जीवो की मानसिक शक्ति हमसे उत्तम नही हो सकती।"

इतना कहकर गूढ पुरुष मौन हो गए। प्रतिभा ने संकेत से तिवारी को उठने को कहा। वे दोनो निश्शब्द वहाँ से उठकर चले आए। बाहर आकर प्रतिभा ने कहा—"अब पापा को मेरी आवश्यकता होगी।"