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खग्रास


"तो मेरा नमस्कार स्वीकार कीजिए।" तिवारी उस विदुषी बाला को नमस्कार कर वहाँ से चलते हुए।

अणोरणीयान महतोमहीयान

गूढ पुरुष ने कहा—

"सापेक्ष्यवाद के प्रवर्तक आईन्स्टीन इस युग के सबसे बडे वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे। उनके सिद्धान्त का मूलाधार यह था कि भौतिक जगत के समस्त पदार्थ और घटनाएं अपने अस्तित्व के लिए अन्य पदार्थों और घटनामो की अपेक्षा रखते है। उनके स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार करके उनकी सही और पूर्ण व्याख्या नही की जा सकती। पदार्थों और घटनाओ के बीच विद्यमान इस पारसरिक सम्बन्ध को सिद्ध करने के लिए ही आईस्टीन ने सापेक्ष्यवाद को जन्म दिया था।"

"इससे पूर्व पदार्थों और घटनाओ की व्याख्या वैज्ञानिक कैसे करते थे?"

"सापेक्ष्यवाद-सिद्धान्त के अस्तित्व मे आने से पहले प्राकृतिक जगत के विभिन्न पदार्थों और घटनाओ की व्याख्या केवल त्रिविमा (थ्री डाइमेन्शन) सिद्धान्त के द्वारा की जाती थी। किसी भी देश (स्पेस) के तीन परिमाण होते है, लम्बाई-चौडाई और मोटाई। आईस्टीन ने उक्त विभागो (डाइमेन्शनो) मे एक अन्य विभा की वृद्धि की। उन्होने काल (समय) को भी विभा मे परिगणित कर लिया। उनका तर्क यह था कि तब तक हम किसी भी पदार्थ अथवा घटना की पूरी व्याख्या नहीं कर सकते जब तक कि उनसे काल को सम्बद्ध न कर लिया जाय।"

"यह तो कोई नई बात नही है। हमारे न्यायशास्त्र मे तो 'काल' को द्रव्य ही माना है। उसे अतीतादि के व्यवहार का हेतु कहा है, और उसे व्यापक भी माना है।"

"परन्तु आईस्टीन कहते है कि काल का कोई अस्तित्व नही है। काल को अपने अस्तित्व के लिए किसी न किसी अन्य पदार्थ पर निर्भर रहना पडता