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पृष्ठ:खग्रास.djvu/३

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सिंहावलोकन

१९५८ का साल राष्ट्रीय एव अन्तर्राष्ट्रीय उथल-पुथल का साल था। राजनैतिक दृष्टि से पश्चिमी तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया मे महान् परिवर्तन हुए, रूस और अमेरिका ने अन्तर्राष्ट्रीय प्रक्षेपणास्त्रो द्वारा व्योम मे कृत्रिम उपग्रह स्थापित किए। इन बातो से मनुष्य का दृष्टिकोण बदला, पश्चिमी एशिया का जागरण हुआ जिसने भारत के महत्त्व को बढाया और भारत राजनैतिक दृष्टि से विश्व की तीसरी शक्ति के समकक्ष हुआ। परन्तु विश्व शान्ति की उसकी भावना का सारे विश्व मे अभिनन्दन हुआ और इस दृष्टि से वह समूचे विश्व का आश्रय केन्द्र बना। ससार के राष्ट्रो के मुंह भारत की ओर उन्मुख हुए। चेकोस्लेवाकिया के प्रधान मन्त्री श्री विलियम सिरोकी, इन्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्ण, ब्रिटिश प्रधान मन्त्री श्री मैकमिलन, अमरीकी सेना के प्रधान जनरल मैक्सवेल टेलर, चीन का शिष्ट मण्डल, उत्तरी वियतनाम के राष्ट्रपति डा. होची मिन्ह, अफगानिस्तान के बादशाह जहीरशाह, रूमानियाँ के प्रधान मन्त्री श्री स्तोइका, न्यूजीलेण्ड के प्रधान मन्त्री श्री बाल्टर नैश, तुर्की के प्रधान मन्त्री श्री अदनान मेदरस, नैपाल के सेनाध्यक्ष जनरल तोरण शमशेर, कम्बोडिया के प्रधान मन्त्री नरोत्तम सिहनख, पाक प्रधान मन्त्री नून, कनाडा के प्रधान मन्त्री श्री जान डीकन बेकर, नारवे के प्रधान मन्त्री श्री गर्डिसन, और घाना के प्रधान मन्त्री डा० क्वामे ऐनक्रुमा ने भारत की राजनैतिक यात्राएँ की। भारतीय-गणराज्य के प्रधान मन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने भूटान यात्रा की, तथा भारत के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने जापान और मलय-इन्डोनेशिया की यात्रा की।

अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओ मे रूस और अमेरिका के उपग्रहो की व्योम मे थापना के अतिरिक्त सर एडमण्ड हिलेरी ने दक्षिण ध्रुव यात्रा की।