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पृष्ठ:खग्रास.djvu/३१५

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खग्रास

होटल के लौज मे डा॰ तुरशातोव, जोरोवस्की, लिजा, स्मिथ और भूदेव बैठे चाय पीते हुए बातचीत कर रहे थे। बहुत सुन्दर सन्ध्या थी। अस्तगत सूर्य की लाल-लाल किरणे लौज के रंग-बिरगे फ्लो पर पड कर उन्हे रङ्गीन बना रही थी। लिजा ने हँसकर कहा—"क्या यह आनन्ददायक नही है कि हम सब मित्र एक जोखिम भरे अभियान के बाद फिर यहाँ एकत्रित है।" उसने एक भेदभरा कटाक्ष जोरोवस्की पर डाला।

"इसमे क्या सन्देह है। पर यह क्षण केवल आनन्ददायक ही क्यो? इसे अद्भुत भी कहना चाहिए।"

"अद्भुत क्यो?" स्मिथ ने जरा आश्चर्य की मुद्रा से कहा।

"इसलिए कि इस समय यहाँ भारत मे अमेरिका और रूस का मैत्री सम्मेलन हो रहा है।" जोरोवस्की ने हंसते हुए कहा।

"लेकिन पाया रूस का ही जबर्दस्त है।" लिजा ने कोमल स्वर से कहा।

"वह कैसे?" स्मिथ ने ऑखे फैलाकर कहा।

"देखिए—रूस के यहाँ तीन प्रतिनिधि है और भारत तथा अमेरिका के एक-एक।"

सब लोग ठहाका मार कर हँस दिए। भूदेव ने हंसते हुए कहा—"आप यह बात क्यो भूले जा रही है कि आप यहाँ भारत मे बैठी है। आप कहे तो मैं अभी होटल के सब वेटरो को यहाँ बुलाकर भारतीय प्रतिनिधि सख्या बढा लूं?"

"सचमुच, यह तो आप कर ही सकते। मै स्वीकार करती हूँ कि भारत महान् है। मैं उसे प्यार करती हूँ।"

स्मिथ ने सिगरेट की राख झाडते हुए कहा—"आबादी के लिहाज से अमेरिका और भारत संसार के सबसे बडे लोकतन्त्र है। भारत बडा और अमेरिका कुछ छोटा। पर दोनो शक्तिशाली है।"

"और दोनो को ही एक दूसरे की आवश्यकता है। यदि एकाधिकारी