पृष्ठ:खग्रास.djvu/३३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३७
खग्रास

सारे संसार को संहार से बचाने के लिए। विज्ञान को मुक्त करने के लिए। मानवसत्ता को आनन्द और उन्नति के मार्ग पर लगाने के लिए मेरा जाना जरूरी है। आज तीन दिन से मै तुम से अलग होने की तैयारी कर रहा था। मुझे मालूम न था कि एक निष्ठुर वैज्ञानिक के हृदय मे भी पिता की आत्मा का बास है। सो मुझे उस पिता की आत्मा को समझाने मे तीन दिन लगे।"

प्रतिभा अधीर होकर उनसे लिपट गई। उसने कहा—"आप हमे छोडकर कहाँ जाएँगे? यह नही होगा।"

"इतनी स्वार्थी और अज्ञानी न बनो प्रतिभा। मुझे तो तुम्हे अकेली को ही छोड़ना पड़ता। पर अब यह सत्पुरुष तुम्हारी रक्षा करेगा।"

"पापा आप जा कहाँ रहे है?"

"अभी मैं चन्द्रलोक जाऊँगा। और वहाँ यह देखूगा कि बिना वातावरण के कैसे प्राणी जीवित रह सकते है। इसके बाद सम्भवत मै मंगल और फिर बृहस्पति नक्षत्र मे कुछ दिन बास करूँ, और इन नक्षत्रो मे प्राण जीवन है या नही—यह देखू।”

"ओह, यह भयानक यात्रा आप कैसे करेगें पापा?" तिवारी ने कहा।

गूढ पुरुष बस हस दिए। उन्होने कहा—"यह तो तुमने बच्चो के समान प्रश्न किया—लो देखो तो।" उन्होने यन्त्र को छुआ और पटल पर अद्भुत चलचित्र का दिग्दर्शन हुआ। वह साइबेरिया प्रान्त का दुर्गमस्थल, जहाँ बड़े २ वैज्ञानिक भीमकाय यन्त्रो को व्यवस्थित करते घूम रहे थे। सैकड़ो पुरुष उनकी सहायता कर रहे थे। "बस, अभी मै यही जा रहा हूँ। यहाँ तुम मुझे देख भी सकते हो।"

दोनो टुकुर-टुकुर उनका मुह देखते रहे।

"उन्होने कुछ रुककर कहा"—देखो बेटे सावधान रहना। किसी भी यन्त्र को छूने का साहस न करना—जब तक प्रतिभा तुम्हे उनके सही उपयोग बतला न दे।

२२