"दूसरी बात यह कि स्वर्ण बनाने की कभी चेष्टा न करना। न प्रतिभा से जिद करना। तुम्हारे लिए यहाँ बहुत सोना है। उसे उसी भॉति यत्न से खर्च करना जैसे संसार मे सब लोग करते है। अब तुम्हे जीवन निर्वाह की चिन्ता न रही। विज्ञान की साधना करना और मानवहित मे मन लगाना।" इतना कह कर वे चुप हो गए। फिर उन्होने तिवारी के कन्धे पर हाथ धर के कहा—
"आज के तरुणो पर नवीन उत्तरदायित्व है। और उनके समक्ष अनेक अवसर है। इसलिए उन्हे साहस और परिश्रम की हद कर देनी चाहिए। के युग मे व्यक्ति की कठिनाइयाँ देश की कठिनाइयाँ है। और देशो की कठिनाइयाँ विश्व की कठिनाइयाँ है। इस प्रकार जीवन के सब दुख सुख मे भारत विश्व के साथ है। और आज के तरुणो को पुरानी स्वदेश-प्रेम की धारणा त्याग कर यह समझना चाहिए कि वे और विश्व के सब मनुष्य एक है। और वे जो कुछ करे विश्व के मनुष्यो की भलाई के लिए करे। उनके मन मे विश्व के सब मनुष्यो के लिए आत्मीयता और प्रेम के साथ ही त्याग और कर्तव्य की भावना जाग्रत करनी चाहिए। उन्हे यह भी न भूलना चाहिए कि आज की औद्योगिक और आणविक क्रान्तियो ने मानव जीवन को कठिनाइयो से भर दिया है। और संसार की ये कठिनाइयाँ जादू के छूमन्तर से दूर नही होगी। उनका सामना आज के तरुणो को अपने मे शारीरिक और मानसिक साहस पैदा करके संघर्षों से युद्ध करते रहकर करना चाहिए। फल क्या होगा—यह मत सोचिए। आशा और निराशा के झूले मे मत झूलिए। सही रास्ते पर आगे बढो। दो बातो पर नजर रक्खो—अच्छाई—और बुराई। और अपना प्रत्येक कदम अच्छाई की ओर बढाते चले जाओ। यह अवसरो का युग है। इसलिए परिश्रम और साहस ही सघर्ष मे तुम्हे विजय दिला सकते है। तुम्हारे जीवन की यथार्थता यह है कि तुम औद्योगिक क्रान्ति और आणविक क्रान्ति की चुनौती को स्वीकार करने को सलर रहो।"
इतना कहते-कहते गूढ पुरुष की वाणी हल्की पड़ने लगी। तिवारी, कन्धे पर उनके हाथ का दबाब भी हल्का हो गया। उन्होने अकचका कर