पृष्ठ:खग्रास.djvu/३४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४२
खग्रास

हम उन दिव्य पुरुष के दर्शनो से वचित रहे। परन्तु उसमे एक हद तक तुम्ही दोषी हो तिवारी। तुमने सब बाते खूब छिपाईं।"

"मै करता क्या—प्रतिभा से वचन बद्ध था।"

"तो प्रतिभा रानी तुम तो विश्व सम्पदा की स्वामिनी हो। फिर मेरी यह भेट स्वीकार करो।" यह कह कर रमा ने अपनी सोने की माला कण्ठ से उतार कर प्रतिभा के गले मे डालकर उसकी ठोडी चूम ली।

इसके बाद गले मे आँचल डालकर प्रतिभा ने दिलीपकुमार और उनकी पत्नी को प्रमाण किया।

एक बार रमा ने फिर शंख पर मंगलनाद किया।