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खग्रास

यदि लम्बी और अधिक दिन की यात्रा करनी पड़े तो इससे कोई लाभ नहीं होगा।"

"यह क्यो?"

"समझी नहीं तुम महीनो और वर्षों तक के लिए तो हमें टनो द्रव प्राण वायु चाहिये। यदि हमें चन्द्रलोक ही में साल छः महीने रहना हो जाए तो इसके लिए टनो द्रव प्राणवायु राकेट द्वारा भला कैसे ले जाई जा सकती है।"

"तो तुमने इसका क्या प्रतिकार सोचा?"

"सीधी सी बात है। मैंने यह निश्चय कियाकि इस बार जो मुझे फिर चन्द्रलोक की यात्रा करनी पड़ेगी, उसमें अपने राकेट में मैं निश्चय ही ऐसा एक यन्त्र लगाऊँगा जो वायु में से कार्बोलिक डाई आक्साइड को चूसता चला जाय और केवल प्राणवायु को छोड़ दे।"

"निस्सदेह महत्वपूर्ण सूझ है।"

"वायु के दबाव का द्रवो के खोलने पर क्या असर पड़ता है, इस पर शायद तुमने विचार नहीं किया।"

"क्यों नहीं। पानी को यदि समुद्रतट पर खौलाया जाय तो वह शताश ताप पर खौलता है, परन्तु ऊँचे पहाड़ी स्थानो पर पानी कम ताप पर खौलता है।"

"इसका कारण भी तुम समझती हो?"

"यह तो सीधी सी बात है कि समुद्र तट के वातावरण में वायु का दबाव अधिक और ऊँचे पहाड़ों पर कम है। वायुमण्डल का दबाव जितना होगा, द्रव पदार्थों के खौलने का तापमान भी उतना ही नीचा होता जायगा।"

"बिल्कुल ठीक, यही बात है। अब देखो कि पृथ्वी से बारह मील की ऊँचाई पर द्रव ३७ अंश पर खौलने लगता है और हमारे शरीर का तापमान भी लगभग ३७ अंश ही है।"

लिज़ा एकदम उछल पड़ी। उसने घबराहट भरे स्वर मे कहा--"ओफ ओ, अब तो पृथ्वी से केवल बारह मील ऊपर अन्तरिक्ष में जाते ही मनुष्य का