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खग्रास

रक्त खौलने लगेगा। क्या तुम्हें ऐसी भयानक ताप यन्त्रणा का सामना करना पड़ा मेरे प्यारे जोरोवस्की।"

"मेरी प्यारी लिजा, मुझे तो तीन सौ मील से भी अधिक ऊँचाई तक अन्तरिक्ष में जाना पड़ा। तुम्हे ज्ञात ही है कि मानव शरीर उच्चतम तापमान ७० अंश और निम्नतम-७० अंश तक सहन कर सकता है। मैंने यथासम्भव ऐसी अनेक व्यवस्था अपने राकेट और कवच में कर रखी थी कि अन्तरिक्ष का वाह्य तापमान चाहे भी जो रहे पर राकेट में भीतर बैठे मनुष्य पर उसका सीधा प्रभाव न हो, और उसके शरीर का तापमान नियन्त्रित ही रहे।"

"तो इसी ने तुम्हारे प्राणो की रक्षा की?"

"प्राणो की रक्षा तो खैर हो ही गई। परन्तु मैने यह भी देख लिया, कि हमारे सारे ही प्रयत्न अति हीन थे। उस भीषण उत्ताप की बात जब भी याद आती है, बस प्राण सूखने लगते है। केवल तुम्हारे पुनर्मिलन की अभिलाषा के बल पर ही मैं उस महाज्वाला की जलन को झेल सका।"

"और अब तुम फिर वही भीषण यात्रा करने की अभिलाषा करते हो?"

"मैं तो प्रिये, यह ठान चुका हूँ कि हम दोनो के विवाह के बाद हमारी मधुयात्रा चन्द्रलोक में ही होगी। हनीमून का वास्तविक आनन्द तो संसार के सब मनुष्यों में केवल हमी दो प्राणी उठाएगे। इतना ही क्यो? हम फिर यहाँ जल्द लौटकर आयेगे ही नहीं। यह भी हो सकता है कि जीवन भर न लौटे, वही बस जाए। और वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित करे?"

"बड़ी क्लिष्ट कल्पना करते हो प्रियतम। मेरा तो भीषण उत्ताप का यह विवरण सुनते ही दिल बैठ गया। यह तो मृत्यु से खिलवाड़ करना है।"

"परन्तु खतरा केवल यही तो नहीं है। और भी बाते है।"

"क्या ऐसी ही भयानक?"

"कदाचित् इससे भी अधिक।"

"वे बाते कौनसी है?"