"परन्तु असाधारण वेग और पृथ्वी से सैकड़ों मील ऊपर का वायु- मण्डल, गति और गुरुत्व का प्रभाव ऐसा है कि प्राणी अपने शरीर पर नियन्त्रण रख ही नहीं सकता। ऐसी अवस्था में एकमात्र उपाय यही है कि पृथ्वी पर ही वैद्युतिक और रेडियो उपसाधनो से यान और आरोही प्राणी के शरीर का सन्तुलन और नियन्त्रण किया जाय। मुझे यद्यपि इस बात का पूरा आभास नहीं था और गुरुत्वाकर्षण के सम्बन्ध मे मेरी प्रो०--से काफी बहस हुई थी परन्तु वस्तुस्थिति का पता न मुझे था न प्रोफेसर को। हम केवल कल्पना और अनुमान के आधार पर ही कुछ प्रबन्ध कर पाए। जो मेरे बहुत काम आया।"
"मुझे याद आता है, तुमने कुछ क्षणों के लिए गुरुत्वाकर्षण शून्य स्थिति पैदा करके उसमे वह समय व्यतीत किया था।"
"हाँ, मैं यह देखना चाहता था कि गुरुत्वाकर्षण शून्य स्थिति की प्राणी शरीर पर कैसी प्रतिक्रिया होती है। परन्तु यह तो मुझे ऊपर जाकर ही पता लगा कि क्षणिक काल की बात तो जुदा है परन्तु लम्बे काल के लिए गुरुत्वाकर्षण शून्य स्थिति की प्रतिक्रिया सर्वथा भिन्न ही है और इतने लम्बे उड़ानों में उसी की अनिवार्य आवश्यकता है।"
"यह तो स्पष्ट ही है कि हमारे शरीर की सारी ही अंग संचालन की क्रिया पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की प्रतिक्रिया मात्र है।"
"निस्सदेह। बॉह को ऊपर उठाना, पैर को आगे बढ़ाना, खड़ा होना, आदि प्रत्येक शरीर संचालन सम्बन्धी क्रियायो में हमे पेशियो के द्वारा जो शक्ति लगानी पड़ती है, यदि गुरुत्वाकर्षण न हो तो वह शक्ति बहुत अधिक लगानी पड़ेगी। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से हम अपनी बाँह को आसानी से नीचे कर लेते है परन्तु जहाँ गुरुत्वाकर्षण नहीं है, वहाँ ऐसा नही कर सकते। उसके लिए भी हमे उतनी ही शक्ति खर्च करनी पड़ेगी जितनी बॉह के उठाने के लिए। ऊपर जाकर मुझे एक यह रहस्य भी मालूम हुआ कि ज्यादातर शरीर गुरुत्वाकर्षण शून्य स्थिति के अनुकूल अपने को आसानी से कर सकता है। परन्तु एक बात है कि गुरुत्वाकर्षण शून्य स्थिति जीवकोषो के व्यवहार,