सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:खग्रास.djvu/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१
खग्रास

चन्द्रलोक में

इसी समय अकस्मात् मुझे मास्को केन्द्र से सूचना मिली कि मैं इस समय पृथ्वी से दो लाख मील अन्तरिक्ष में हूँ। और मुझे सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि अब चन्द्रलोक के आकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट होने में विलम्ब नहीं है। इस समय मेरी उत्कण्ठा का क्या ठिकाना था। मानव इतिहास की अनहोनी घटना घटित हो रही थी और मेरे ही भाग्य मे वह पुरुष होना लिखा था जिसके चरण प्रथम बार चन्द्रलोक को स्पर्श करने वाले थे। अकस्मात् मेरे यान को एक धक्का लगा मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरा यान किसी चट्टान से जा टकराया। पर दूसरे ही क्षण यान अपनी गति बदलकर तीव्र गति से चल दिया। वास्तव में मैं अब चन्द्रमा की कक्षा में घूम रहा था।

एक बार मैंने अपने यान के सभी यन्त्रो पर दृष्टि डाली। सभी यन्त्र निश्चल निश्चेष्ट थे। केवल रेडियो सूचनाये बाराबर मास्को से आ जा रही थी। मैं जानता था कि चन्द्रलोक पृथ्वी से दो लाख अड़तालीस हजार मील दूर है। इस हिसाब से तो मैं अब चन्द्रलोक के निकट ही पहुँच गया था पर इस कक्षा से मैं कैसे निकलू यह नही समझ रहा था। अकस्मात ही यह देखकर मेरे आश्चर्य की सीमा न रही कि यान के सब यन्त्र फिर यथावत् चलने लगे थे। गति सूचक यन्त्र भी बता रहा था कि अब मेरा यान १२-१३ सौ मील से भी कम गति से बिल्कुल ठीक-ठीक चल रहा था। हकीकत यह थी कि मैं अब चन्द्रलोक के आकर्षण क्षेत्र में प्रविष्ट हो रहा था। इसी समय दृष्टिपट पर चन्द्रमा स्पष्ट दीख पड़ने लगा। अब मेरे यान की दिशा भी बदल रही थी। और वह धीरे-धीरे चन्द्रलोक में उतर रहा था। शीघ्र ही उसकी गति आठ सौ सात सौ मील प्रति घन्टा रह गई। यान पर मेरा अब पूरा कन्ट्रोल था।

ज्यों ही मैंने यह सूचना मास्को भेजी, वहाँ से मुबारकबादियो और सलाह मशवरो का ताता बँध गया। शीघ्र ही शून्य में आलोक बढ़ने लगा और चन्द्रलोक के पर्वत शृङ्ग, मृत ज्वालामुखियो के गह्वर, मीलो चौड़े