पृष्ठ:खग्रास.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६२
खग्रास

पहाड़ी पठार और पहाड़ी दर्रे मेरे सम्मुख आने लगे। इस समय रेडियो चालित छः सात कैमरे तेजी से काम कर रहे थे। सैकड़ों चित्र सीधे मास्को जा रहे थे और वहाँ से उत्सुक आवाजे मेरे कानो में पड़ रही थी।

परन्तु यह क्या? जिस चन्द्रमा को सुमुखी के सुन्दर मुख का प्रतीक माना गया है, कवि लोग जिसे अपनी काव्योपमा का माध्यम मानते है, जिसकी शीतल चॉदनी नेत्रो को आप्लावित कर देती है, उस चन्द्रमा का यह कैसा रूप? काली काली बेढङ्गी उजाड़ वीरान पहाड़ियो के उच्च शृङ्ग, सूखे हुए समुद्रो के अथाह गह्वर, और अनन्त तक फैली हुई छोटी बड़ी चट्टाने।

परन्तु अब तो मैं चन्द्र लोक में उतर रहा था। ओर एक बार फिर भयानक खतरा मेरे सम्मुख था। अब मैं चन्द्र धरातल पर उतरूँ कैसे? यदि मेरा यान किसी पहाड़ी से टकरा कर चकनाचूर हो गया तो? यदि इनमे से कोई पहाड़ी चुम्बक पत्थर की निकल आई तो? चन्द्रमा के पूर्ण होने पर पृथ्वी में ज्वार आता है। यह ज्वार क्या है? क्या उस दिन चन्द्रमा की कोई चुम्बकीय पर्वत श्रृंखला तो पृथ्वी के सामने नही आ जाती। सब बाते बड़ी तेजी से मेरे मस्तिष्क में घूमने लगी।

"ठहरो, चन्द्रमा पृथ्वी के चारो ओर एक मास में चक्कर लगाता है न?"

"कुछ कम एक मास में।"

"ठीक है। वह अपनी धुरी पर भी पृथ्वी की तरह घूमता है।"

"हॉ, परन्तु इसमे उल्लेखनीय बात यह है कि जब पृथ्वी अपनी धुरी पर लगभग २४ घण्टे में एक बार घूमती है, तब चन्द्रमा को अपनी धुरी पर एक बार घूमने में प्राय एक मास लगता है।"

"इससे तुम्हारा क्या अभिप्राय है?"

"यह कि चन्द्रमा का अपनी धुरी पर घूमने का और पृथ्वी की एक परिक्रमा करने का समय एक ही है?"

"तो इसका अभिप्राय यह कि चन्द्रमा का अपनी धुरी पर घूमने तथा