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खग्रास

की वेदी पर प्राण विसर्जन कर रहा हूँ। मुझे अपनी मृत्यु का कुछ भी भय नहीं है।"

"नहीं, नहीं, मेरे बच्चे, हम तुम्हे कदापि नहीं मरने देंगे। कोई न कोई रास्ता निकल ही आयगा।"

मृत्यु सुन्दरी का आलिगन

दो दिन और बीत गए, तथा इसी बीच एक विचित्र घटना घटी। गैस के समुद्र तट पर घूमते घूमते मुझे कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई विचित्र सजीव जैसे पिण्ड समुद्र की सतह पर तैर रहे है। मैंने प्रथम तो उनके फोटो लिए, फिर उनमे से एक को पकड़ने मैं आगे बढ़ा। निकट पहुँचकर मैंने देखा---वह जैसे फेन से बने हुए हो। ज्योही मैंने उनमे से एक को पकड़ने की चेष्टा की, कोई चिपचिपी सी वस्तु मेरे हाथ में आ गई और वह अनायास ही हाथ से फिसलने लगी। यद्यपि मेरे हाथ कवच से आवेष्टित थे और मेरी चमड़ी से उस पदार्थ का स्पर्श नहीं हो रहा था, पर यह मैंने देखा कि उस पदार्थ में गति भी है और शक्ति भी। मैंने ज्यों-ज्यों उसे अपने काबू में करने की चेष्टा की त्यों-त्यों वह वस्तु जबरदस्ती मेरे हाथो से फिसलने लगी। अब अकस्मात् ही मैंने देखा कि कोई वस्तु मेरी गर्दन दबोच रही है। वास्तव में उसी वस्तु में से एक लम्बा हाथ जैसा अंग निकल कर मेरी गर्दन में इस तरह लिपटता जाता था जैसे कि कोई अजगर लिपटता जाता हो। क्षण भर ही में मैंने अपनी स्थिति की भयंकरता को समझ लिया। मैंने तुरन्त एटेमिक पिस्टल से एक फायर किया। पृथ्वी पर तो इस महास्त्र का एक फायर प्रलय ढा सकता था, पर यहाँ उस पदार्थ पर उसका कोई असर नहीं हुआ। उल्टे मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि जैसे एक दूसरे लम्बे हाथ ने बढ़ कर मेरी कमर को भी लपेट लिया है। यह प्रथम ही अवसर था कि मैंने अपने को विवश अनुभव किया और अब मुझे स्पष्ट यह प्रतीत हो रहा था कि किसी शक्तिशाली अजगर ने मेरी गर्दन और कमर को दबोच लिया है और वह धीरे-धीरे मुझे अपनी गिरफ्त में कसता जा रहा है।

एक बार भय से मैं जड़ हो गया और फिर प्राणपण से मैं अपने