सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:खग्रास.djvu/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७३
खग्रास

बचाव में जुट गया। मैंने संक्षेप में अपनी इस विपत्ति की सूचना मास्को भेज दी। प्रोफेसर ने कहा---किसी तरह भाग कर मैं यान तक पहुच जाऊँ। परन्तु यह तो अब सम्भव ही नहीं प्रतीत हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था कि अब गिरा, अब गिरा। उस पदार्थ की गिरफ्त मुझे कसती ही जाती थी। और मैं विवश होता जा रहा था। इसी समय मेरा हाथ एक तेज छुरे पर जा पड़ा। मेरे कवच में कई छुरे थे। मैंने पूरे वेग से छुरे का वार उस विचित्र पदार्थ पर किया। मुझे ज्ञात हुआ कि एटामिक पिस्टल से जो काम नहीं हुआ था, वह इस छुरे के बार से हुआ। मैंने देखा कि मेरी गर्दन की गिरफ्त ढीली हुई है और मैं वहाँ से यान की ओर भागा। परन्तु इसी समय मैंने देखा कि वैसे ही असंख्य पदार्थ चारो ओर से मेरे पास को बढ़े चले आ रहे हैं। अब तो ऐसा भी प्रतीत हो रहा था कि जैसे वे सजीव पदार्थ हो। जो पदार्थ मेरी गर्दन और कमर को दबोचे हुए था, उसमे से एक आवाज ऐसी आ रही थी जैसे कोई जोर-जोर से सास ले रहा हो। मैं यान की ओर भागता हुआ जा रहा था और खचाखच उस पदार्थ पर छुरे का बार भी करता आ रहा था। निस्सन्देह, इसका अनुकूल परिणाम हो रहा था। पर अब तो उन असंख्य पदार्थो ने भी जैसे मुझे छू लिया था।

मेरा कवच अत्यन्त दृढ़ था। पर यदि वह कही से भी भंग हो गया तो फिर मेरे जीवन की आशा ही खतम थी। बड़े ही साहस और अध्यवसाय से मैं अपने यान तक जा पहुचा। मैं यान के निकट पहुँचा और उसका आवरण खोलकर जबर्दस्ती भीतर घुस गया। मैंने देखा मेरी गर्दन और कमर में लिपटा हुआ वह पदार्थ भी लिपटा हुआ यान में चला आया। और उसके साथ ही वैसे ही अनेक पदार्थ भी। परन्तु मैं अब अधिक सुरक्षित था। बड़ी ही कठिनाई से अपना पूरा जोर लगाकर मैंने यान का द्वार बन्द कर लिया और फिर आत्मरक्षा के अन्य सभी सम्भव उपाय किए। परन्तु मैं विवश और बेहोश होता जा रहा था। मैंने अन्तिम सूचनाएँ केन्द्र को भेजी। प्रोफेसर ने मुझसे कुछ कहा---परन्तु मैं ठीक-ठीक समझ न सका। मेरी चेतना तेजी से लुप्त होती जा रही थी। अब तो जैसे मृत्यु सुन्दरी मुझे आलिंगन करती आ रही थी। एक-एक क्षण जीवन की स्मृतियाँ उदय हो