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खग्रास

गमन करने के मार्ग में पड़ जाता है, और संयोग से सौर-परिवार में प्रविष्ट हो जाता है, तब हमारा शक्तिशाली सूर्य अपने आकर्षण द्वारा तुरन्त ही उसे अपनी ओर खींचने लगता है। और खिंचते-खिंचते जब वह सूर्य के निकट पहुँच कर प्रकाशित होता है तभी हमे नज़र आने लगता है।"

"क्या धूमकेतु सौर-परिवार में प्रविष्ट होने के बाद फिर बाहर आ जाते है?"

"नही, फिर तो वह सदा के लिए सौर परिवार के बन्दी हो जाते है। और ग्रहो की भाँति नियमपूर्वक अपने दाएँ वृत्ताकार मार्ग पर सूर्य की परिक्रमा करने लगते है।"

"किन्तु इन धूमकेतुओ का मार्ग निर्दिष्ट तो नहीं होता, तब क्या यह सम्भव नहीं कि उनसे कभी न कभी उपग्रहो की टक्कर हो जाय।"

"बहुत सम्भव है। 'हेली' और 'विस्ला' धूमकेतु हमारे परिचित हैं। यह बहुत कुछ सम्भव है कि दस वर्ष बाद हेली से रूसी उपग्रह की टक्कर हो जाय। बशर्ते कि वह इतने समय तक पृथ्वी प्रदक्षिणा करता रहे।"

"क्या ये धूमकेतु भी ग्रहो की भाँति चिरंजीवी है?"

"नहीं। सूर्य और ग्रहो के आकर्षण से छिन्न-भिन्न होकर ये लाखो- करोड़ो भागो में बिखर जाते है। बाद में धूमकेतु के छोटे-छोटे खण्ड उसी गगन मार्ग पर भ्रमण करते रहते हैं। फिर कभी पृथ्वी या सौर परिवार का कोई अन्य ग्रह उन्हे अपनी ओर खींच कर भस्म कर देता है। धूमकेतुओ के ये अनेक खण्ड ही उल्का तथा उल्का-पिण्ड कहाते है।"

"मैने देखा---सचमुच मेरा विमान भीषण वेग से उड़ा चला जा रहा है। मैंने यन्त्र संचालित करने की फिर चेष्टा की पर ईंधन तो चुक ही गया था, केवल दो राकेट मेरे पास बचे थे। अब मैंने निश्चय किया कि राकेट के द्वारा विमान को रूस में फेकदूँ और मैं यही कही कूद पडू। यह बात मैंने प्रोफेसर से कही और पूछा--अब मैं कहाँ हूँ।"

उन्होने कहा---तुम इस समय भूमध्य सागर के ऊपर उड़ रहे हो परन्तु बीस ही मिनट मे तुम भारत की भूमि पर पहुच जाओगे। धूमकेतु