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पृष्ठ:खग्रास.djvu/८३

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खग्रास

"वहाँ चटकीले रंग नहीं दिखाई देते, जैसे यहाँ घास पत्ते हरे दिखाई देते है।

"यह क्यो?"

"वहाँ अल्ट्रावायलेट और क्ष किरण प्रकाश रंग मारता है। वहाँ आकाश भी काला दिखाई देता है।"

"यह तो एकदम अशोभनीय एव भीषण है।"

"यहाँ से चन्द्रमा कितना सुन्दर सुहावना दीखता है।" पर चन्द्रमा का निकट दर्शन तो ऐसा ही है। इतना ही क्यों और भी अत्यन्त रहस्यपूर्ण बाते है।"

"वे क्या-क्या है?"

"वहाँ पर न कोई नदी है, न नाला, न वहाँ वर्षा होती है। वहाँ की विषुवत् रेखा पर दिन में तापक्रम भी २१४ अंश फारेनहीट हो जाता है। जो उबलते पानी के तापक्रम से भी अधिक है। रात के समय का तापक्रम २५० अंश फारनहाइट हो जाता है।"

"ओफ्फो, इतने तापक्रम पर तो हवा भी ठोस द्रव्य के रूप में बदल जाती है। तुम्हे शायद तुम्हारे कवच ने बचा लिया।"

"इसमे क्या संदेह। मेरा कवच पूर्ण रूपेण वातानुकूलित था।"

"लेकिन वहाँ के रात और दिन में ताप का इतना अन्तर क्यो है?"

"वायु न होने के कारण।"

"तुमने कहा न, वहाँ रग है ही नही।"

"बस, काला या भूरा सा रंग है। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ो की परछाई गहरे काले रंग की दिखाई देती है।"

"अच्छा, चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति क्या हमारी पृथ्वी के बराबर ही है।"

"कहाँ? पृथ्वी से बहुत कम है। यहाँ से यदि कोई राकेट ७ मील फी सैकण्ड की गति से ऊपर की ओर फेका जाय तो वह पृथ्वी पर कभी वापस न आयगा क्योंकि वह पृथ्वी की आकर्षण शक्ति से बाहर निकल