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खग्रास

परत है जो नक्षत्रो के मध्यवर्ती शून्याकाश से जाकर मिल जाती है। एक्सोस्फियर भूमि के पृष्ठ से १८ हजार मील की ऊँचाई तक फैली हुई है।"

"तुम्हे क्या आशा है कि ट्रोपीस्फियर के बारे में की जाने वाली जाच के फलस्वरूप 'जैट-स्ट्रीम' प्रणाली के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकेगी?"

"मैं तो अाशा करता हूँ। और यह जानकारी साधारण हवाई उड़ानों के लिए बडी उपयोगी सिद्ध होगी।"

"जैट स्ट्रीम के सम्बन्ध में उस दिन तुम कुछ कह रहे थे न?"

"हॉ, उत्तरी गोलार्द्ध में १५ हजार से ४० हजार फुट की ऊँचाई पर पूरे साल पश्चिम से पूर्व की ओर जो हवा ५० से ३०० मील प्रति घण्टा की गति से पृथ्वी के चारो ओर चक्कर काटा करती है, वही 'जैट स्ट्रीम' है। इस हवा के प्रवाह-क्षेत्र में आ जाने से पश्चिम से पूर्व की ओर उड़ान करने वाले दूरगामी वायुयानो की गति बढ सकती है और उनके पैट्रोल के खर्चे में काफी बचत भी हो सकती है।"

"स्ट्रेटोस्फियर की परिस्थितियो को भी तो आका जा रहा है?"

"हाँ, हम उसका एक रिकार्ड रखना चाहते है। असल बात यह है कि वायुमण्डल की इस परत का महत्वपूर्ण भाग ओजोनलेयर है। यह परत २० से ४० मील तक की ऊँचाई पर होती है। ओजोन आक्सीजन की तरह की ही एक गैस है। अन्तर केवल इतना है कि जहाँ हमारे श्वास लेने की आक्सीजन के व्यूहानू में २ अणु आक्सीजन के होते है, वहाँ ओजोन के व्यूहाणु में ३ अणु आक्सीजन के होते है। ओजोन की परत सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट किरणो के बहुत से भाग को अपने में समा लेती है। पृथ्वी पर रहने वाले लोगों तथा पशुओ के जीवन के लिए वायुमण्डल में ओजोन की इस परत का होना जरूरी है क्योंकि सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणो के पूर्ण विकिरण के सामने जीवजन्तु व मनुष्य जीवित नहीं रह सकते।"

"अच्छा आयनोस्फियर परत की बाबत तुम क्या कहते हो?"