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पृष्ठ:खग्रास.djvu/८९

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८९
खग्रास

अगम्य खगोल

जोरोवस्की ने कहा---

"वायुमण्डल के बारे में प्राय हर व्यक्ति ने यह सामान्य राय बना रखी है कि यह वायु का एक अपार भण्डार है जो पृथ्वी को घेरे हुए है। परन्तु अब हमे ज्ञात हुआ है कि वायुमण्डल अत्यधिक विस्तृत, अधिक पेचीदा, तथा अधिक रहस्यमय है। अब ऐसी बातो का भी हमे पता लगा है कि जिनकी पहले कभी वैज्ञानिको ने कल्पना भी नहीं की थी।"

"सचमुच हमने तो जब भौतिक विज्ञान पढा था तो यही पढा था कि वायुमण्डल की रचना बहुत सामान्य है, ज्यों-ज्यों ऊपर जाते है, हवा की घनता कम होती जाती है और अन्तरिक्ष के शून्य में विलीन हो जाती है।"

"तुमने ठीक कहा। उन भौतिक शास्त्रियो को तब तक यह पता न था कि वायुमण्डल की जटिल स्थिति है और एक के ऊपर दूसरी परत होने और उसके कुछ हिस्सो में अद्भुत दशाएँ होने के बारे में वे कुछ नही जानते थे। क्योंकि भूतल पर किए जाने वाले परीक्षणो से वायुमण्डल के बारे में इस प्रकार की विस्तृत जानकारी प्राप्त नही हुई थी।"

"क्या तुम्हे कोई अनूठी नई जानकारी हुई है?"

"हाँ, अब हमे यह पता लग चुका है कि पृथ्वी के चारो ओर का वायु मण्डल चार परतो में विभक्त है।"

"वे परत कैसे है?"

"वायुमण्डल की सबसे नीचे की परत को 'ट्रोपीस्फियर' नाम दिया गया है। ट्रोपीस्फियर घनी हवा की वह परत है जिसमे हम रहते है। भूमध्य रेखा के निकट इस परत की गहराई १० मील है, और ध्रुव क्षेत्रो के निकट इसकी गहराई पाँच मील है। इसके ऊपर की परत का नाम है 'स्ट्रेटोस्फियर'। यह परत ट्रोपोस्फियर की ऊपरी सीमा के लगभग पचास मील ऊँचाई तक फैली है। 'स्ट्रेटोस्फियर' के ऊपर तीसरी परत 'आयनोस्फियर' हे जो भूमि से सामान्यत ५० से २५० मील की ऊँचाई के बीच होती है। 'आयनोस्फियर' के ऊपर 'एक्सोस्फियर' चौथी परत है। यह वह