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पृष्ठ:खग्रास.djvu/९८

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खग्रास

थी। उसने खूब गहरे सुर्ख रङ्ग की साड़ी पहनी थी। पता नहीं, किस अभिप्राय से उसने काले चश्मे से अपनी कटीली आँखो को छुपा रखा था। उसके गले में एक बहुमूल्य पन्ने का हार था और कान में हीरे के कुण्डलो की बिजलियाँ कौध रही थी।

स्मिथ ने अॉख उठा कर देखा और हँस दिया। उसने कहा---"अच्छा, तो आप औरतो में खासी दिलचस्पी रखते है। लेकिन भई, जरा होशियार रहना, यह भारत है, स्त्रियो के प्रति पुरुषो का दृष्टिकोण यहाँ हम विदेशियो से भिन्न है। यहाँ स्त्री पुरुषो का सम्मिलित समाज नहीं है और स्त्री पुरुष के बीच एक पर्दे की दीवार खड़ी है।"

"सच? मैं तो यह कुछ भी नहीं जानता। आपने सावधान कर दिया। धन्यवाद। हॉ, आप भारत की राजनीति की क्या बात कर रहे थे?"

"मैं कह रहा था---यहाँ की हर चीज की तरह भारत की राजनीति भी निराली ही है। देखिये, भारत में न अमेरिका और रूस के समान अणुबम, उद्जन बम और राकेट है, न ऐसी अजैय सेना ही जिसका अन्तर्राष्ट्रीय महत्व हो, वह दोनो महाशक्तियो में से किसी गुट में भी शरीक नहीं है, यहाँ तक कि बगदाद संधि संगठन में पाकिस्तान शरीक हुआ पर भारत नहीं। इसके अतिरिक्त वह कम्युनिस्ट गुट में भी नहीं है। पर सबका चौधरी बना हुआ है। उसकी शान अमेरिका और रूस से कम नहीं है।"

"सच? मैं तो इस सम्बन्ध में कुछ कह नहीं सकता। परन्तु जब उसके पास न तो अाधुनिक हथियार है, न आधुनिक राजनैतिक और आर्थिक सत्ता, तो आप कैसे उसे रूस और अमेरिका की तरह शानदार कहते है?"

"पंचशील उसका सबसे जबर्दस्त हथियार है और भारत के प्रधानमत्री जवाहरलाल नेहरू दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री है। इन्हीं दो चीजो ने भारत को इतना ऊँचा उठा दिया है। आप देख नहीं रहे कि आज एशिया, अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और रूस के लिए भारत तीर्थ स्थान बना हुआ है। सब का मुह इधर ही है, सब का रुख इस ओर है।"