पृष्ठ:खग्रास.djvu/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९७
खग्रास

"मसलन?"

"मसलन वे रानी साहिबा। फिर इस शाम ही को देखिए, ऐसी सुहावनी शाम भला कहाँ देखी जा सकती है।"

वेटर शराब ले आया। दोनो ने गिलास उठाए। स्मिथ ने कहा--- "आपके स्वास्थ्य और आपके देश की शुभ कामना के लिए।"

"तथास्तु" कहकर जोरोवस्की ने जाम लेकर हँसते हुए मुँह को लगाया।

उस दिन होटल में कई शानदार दावतो का आयोजन था। अनेक सुन्दरियॉ धीरे-धीरे लाज में आने लगी। देश-देश के भद्र पुरुष भी चहल-कदमी करने लगे। देखते ही देखते लाज नर-नारियो से भरने लगा।

स्मिथ ने कहा---"इसमे संदेह नहीं, भारत हर बात में निराला है। यहाँ की राजनीति को ही ले लीजिए।"

"क्या आप राजनीति में भी दखल रखते है?"

"यो ही कुछ-कुछ। अन्तत मैं एक व्यापारी हूँ और आज के युग में अर्थनीति और राजनीति का मेल बहुत खाता है।"

"हो सकता है। मैं तो राजनीति और अर्थनीति दोनो ही में निपट अनाड़ी हूँ।"

"आप शायद विज्ञान में अधिक रुचि रखते है।" स्मिथ की आँखो में एक चमक उत्पन्न हो गई। जोरोवस्की ने सरलता से हँसकर कहा--"बस, मैं तो घुमक्कड़ आदमी हूँ। देखिए, इधर जरा उस सुन्दरी के ठाठ।" उसने एक ओर को इंगित किया। स्मिथ ने देखा---एक दुबली पतली छरहरे बदन की भारतीय बाला अकेली ही मोटर से उतर कर लाज की ओर आ रही थी। बाला का रङ्ग कुन्दन की भॉति दमक रहा था और उसके काले मुलायम बाल रेशम की भॉति चमक रहे थे। उसके स्वस्थ चेहरे पर कमान सी तिरछी भौहो के बीच लाल बिन्दी बड़े ठाठ की थी। उसकी चाल भी मनमोहनी