को इस पद पर बैठाया है कि आप मुझ सी एक अदनी और अनाथ लड़की पर यो मनमाना जुल्म करें ? इसलिये आप कृपाकर अपने सत्याचार की मात्रा को अब अधिक न बढ़ाईएगा और मुझे हकिम के आगे पेश कर दीजिए। फिर जो मेरे करम में सदा होगा, यही अदा होगा।
मेरी ऐसी विनती सुनकर वे मारे क्रोध के इस कदर बल बैठे कि मैं एकदम घबरा गई और मन ही मन भगवती का स्मरण करने लगी।
उन्होंने लाल लाल आँखों से मेरी ओर घुरस्कार मेरी बगल में खड़े हुए ही दरोगाजी से यों कहा,--" दरोगाजी, यह बड़ी बदमाश औरत है, इसलिये एक सादे कागज पर एसा के हाथ के अंगूठे का निशान ले लो और इस शैतान की बच्चो को उसी कोठरी में बन्द कर माओ।"
बस, इतना सुनते ही दरोगाजी ने मेरे अंगूठे में स्याही लगाकर बरजोरी उसकी छाप एक कोरे कागज पर की और मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया।
उस इशारे को समझकर अब मैं चलने लगी, तब न्यायमूर्ति कोतवाल साह ने दरोगाजी से यों कहा कि,-" देखना, दरोगाजी ! इस पापी औरत को कोई शख्स कुछ भी खाने-पीने को चीजें न देने पावे । बस, जहां यह दो-चार रोज भूखी रक्खी गई कि एक दम सीधी होजायगी और तब जो कुछ इससे कहा जायगा, पिला उज्र उसे मान लेगी।
इस पर--" बहुत अच्छा "--कहकर दारोगाजी मुझे उसी कोठरी में लाकर बन्द कर गए और जाती पार मेरे पहरेदार से एक अपना भी यह हुकुम देते गए कि,-" देखना, लछमन दुबे! यह औरत जरा भी सोने न पाये। क्योंकि अगर यह सोने न पावेगी, तो झखमार कर कोतवाल साहब के हुक्म-समूजिप अपना