पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१०३

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सात खून


ध्यान लिखावेगी।"

यों बाहर दरोगाजी चले गए और उनके जाने पर उस कांस्टेथिल (लछमन दुधे ) ने मेरी ओर घूर कर यो कहा,-"क्यों, तुमने दरोगाजी का हुकुम सुना न ? इसलिये खबरदार, सोना मत, नहीं तो बाहर से मैं तुम्हारे ऊपर ठढा पानी गेरूंगा।"

इस पर मैने यों कहा,--" अच्छा, भइया ! जब मैं सो जाऊं, तब तुम जरूर मुझ पर पानी डालना।"

यों कहकर मैं चुप होगई और ओढ़-डेढ़ कर अपनी जगह पर बैठी हुई अपने भाग्यचक्र को सराहने लगीं। पद कांस्टेथिल ठहर ठहर कर चार बार मुझे टोकता, पर जब मेरा जवाब सुन लेता, सब कंधे पर बन्दूक धरे हुए फिर टहलने लगता । योही जय तीन बजे उसकी जगह पर दूसरा पहरेदार भाषा, तो घर भी मुझे जागतो रहने के लिये बार बार कहने लगा । मैं भी उससे हर पार यही कहती गई कि,-"नहीं, भाई ! मैं सोती नहीं हूं, बल्कि तुम्हारे सामने ही बैठी हुई हूं।"

इस तरह रात के नी बजे के बाद रघुनाथसिंह मेरे पहरे पर तैनात हुए और थोड़ी देर तक इधर उधर घूम-फिर और देख भाल कर बहुत ही धीरे से उन्होंने सुझसे यो कहा,-" दुलारी, आज जो कुछ लुभा है, यह सब मुझे मालूम है। आज जिस वक्त तुम कोतवाल साहब के सामने पेश की गई थी और उनके साथ जो कुछ तुम्हारी बातचीत हुई थी, वह सब मैंने अपने कानों से सुनी थी, क्योंकि उस समय मैं भी उस कमरे के अगलवाली कोठरी में खड़ा हुआ था। सुनो, एक कोरे कागज पर जो तुम्हारे अंगूठे का निशान ले लिया गया है, उसका मतलब यह है कि अब उस कागज पर कोतवाल साहब अपने खातिरखाह तुम्हारा बयान लिख कर मजिस्ट्रेट के आगे उसे पेश करेंगे और अपने बयान में यों कहेंगे कि, 'यह इजहार दुलारी ने अपनी रजामन्दी से लिखवाया है और