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खूनी औरत का


सीख छठी कि वहां पर कई फांस्टेबिल आकर जमा होगए और खुद कोतवाल साहब भी आ पहुंचे !

फिर कोतवाल साहब ने मुझसे चिल्लाने का कारण पूछा, सब मैने उस कमीने अमीर की सारी बदमाशियों का खुलासा हाल उन्हें सुना दिया। यह सुन कर कोतवाल साहब ने उसे दो-चार घोल लगा कर यहाँसे दूर किया, मेरे पहरे पर किसी दूसरे कांस्टेबिल को मुकर्रर किया और मुझसे यो कहा,--" दुलारी, अब तुम्हारे साथ कोई भी शरारत न करेगा।"

यों कह कर वे चले गए गौर मैं धरती की ओर मुहं करके आंसू गिराने लगी।

बस, इस बात को अब तूल न देकर मैं यहां पर इतना ही कहना चाहती हूं कि जब तीन दिन तक मैने कोरा उपवास किया, तब चौथे दिन कोतवाल साहब बे मुझे कच्चा दूध मगवा दिया। उस दिन सोमबार था। सो, अपने मामूली कामों से निपट, नहा-धो और दूध पीकर मैं मजिस्ट्रेट साहब के सामने पेश होने के लिये कचहरी पहुंचाई गई।

पर, किस तरह मैं कोतवाली से रवाने हुई और फिर किस भांति मजिस्ट्रेट साहब के सामने हाजिर की गई. इसे भी सुन लीजिए । मैने अपने पहरेदारों के मुहं यों सुन रहा था कि, 'मुझे पैरों में बेटी और हाथों में हथकड़ी पहन कर कोतवाली से कचहरी तक पाधं-प्यादे जाना पड़ेगा!' यह सुन कर एक बेर तो मैं मारे लज्जा के मुर्त सी होगई थी; पर फिर मैंने मन ही मन खूब सोच विचार कर अपने नी को इस तरह ढाढ़स दिया था कि, 'अरे मन! जब कि मैं खून के अपराध में पकड़ी जाकर हाकिम के सामने पेश की जाती ई, तब फिर मुझे लज्जा किस बात की है ! अरे, स्मशान में भी कभी लज्जा रह सकती है ?" अस्तु,यही सब तीन-पांच सोच कर मैं मन मार बैठी थी, पर अन्त में यह सब कुछ भी न