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सात खून


सोई नहीं ?"

मैं बोलो,--"नहीं, भाई ! आज तो मुझे नींद ही नहीं आती ! क्या करूं, लाचार है। हां, यह तो कहो कि आज तुम्हारे पहिले मेरे पहरे पर कौन था ?

वे बोले,--"वह दरोगाजी का साला था। उसका नाम अमीर है और वह पढ़ा ही पापी आदमी है । क्यों, उस शैतान ने तूम्हारे साथ कुछ छेड़छाड़ की थी, क्या ?"

मै बोली,--"हां, कुछ की तो थी ! पर खैर, अब उस बात को जाने दो और यह कही कि इस समय तुम मुझे थोड़ा सा गङ्गाजल पिला सकते हो ? "

"हो, अभी लाता हूँ"--यों कह कर वे यहांले चले गए और थोड़ी ही देर में शिवरामतिवारी के साथ लौट आए । तिवारीजी के हाथ में जल-भरा लोटा और दुसरे हाथ में एक केले का पत्ता था। सो, उन्होंने उस पत्ते में चार चांधी और मैने अंजुली लगा कर बात की बात में सारा लोटा साली कर दिया !!!

बाद इसके, वे खाली लोटा लिए हुए चले गए और रघुनाथसिंह बहल-घूम कर पहरा देने लगे। मैं भी थोड़ी देर तक बैठी हुई तरह तरह के सोच-विचार भारती रहो । इसके बाद लेट गई और दो ही चार करवटों के बाद नींद ने मुझे धर दबाया।

सुबह जब मेरी नींद खुली, तब मैंने क्या देखा कि मेरी कोठरी के जङ्गले के पास वही अमीर कांस्टेबिल खड़ा हुआ मुसकुरा रहा है !!!

मुझे आगी हुई देख कर उस शैतान ने यो कहा,--" दुलारी, अगर तुम जरा सा हंसकर मेरी और देख लो, तो आज राख को मैं तुम्हें इस कोठरी से निकाल कर कहीं दूसरी पोशीदा जगह में ले मांगू और तुम्हें इस खून के झमेले से बचा लूं।"

सबेरे-सबेरे इस मुंए की, ऐसी बात सुन कर मैं इतने जोर से