और मजिस्ट्रेट से "रहम" करने के लिये अर्ज करना। वह हाकिम बहा रहमदिल है, इसलिये मैं कोशिश और सिफारिश करके तुम्हें बेलाग बचा लूंगा। लेकिन जो तुमने मेरे कहने के चमू जिथ अपने कसूर को कबूल न किया, तो फिर मैं तुम्हारे छुड़ाने के लिये जरा भी कोशिश न करूंगा । क्योंकि बगैर मेरी सिफारिश और कोशिश के, तुम्हारा छुटकारा पाना एकदम गैर-मुमकिन है । । अरे ! कोतवालसाहब की ऐसी विलक्षण बातें सुन कर मैं मन ही मन हंसी और यों कहने लगी--"आपने जो कुछ कहा,वह बिलकुल ठीक है; पर जो मैं अब अपने को छुड़ाया न चाहूं, तो क्या करूं?
वे बोले,--"तुम्हारी इस बात का क्या मतलब है ? "
मैं बोली,--"सुनिए, कोतवालसाहब ! मैं एक भले घराने की लड़की हूं। इसलिये जब कि मैं खून के कसूर में गिरफ्तार होकर इस तरह हथकड़ी पहने हुई मजिस्ट्रेट के सामने पेश की जाती हूं, तो फिर इस आफ़त से छुटने पर मुझ कुमारी कन्या को मेरे जसा- बाले भला कब ग्रहण करेंगे ? मेरे मां-बाप तो हैं नहीं, कि वे मुझे हर तरह से लेने और अपनाने के लिये तैयार होजायंगे। अब रही जात-बिरादरी-वालों की बात,-सो वे भला अब मुझे कब अपनी पांत में खड़ी होने देंगे? इसलिये अब इस दुर्दशा को पहुंच कर तो मैं छुड़ने की अपेक्षा मर जाना ही अच्छा समझती है।"
मेरी ऐसी बातें सुन कर शायद वे बहुत ही कुडबुडाए और कहने लगे,--"नहीं, यह तुम्हारी सरासर गलती है। इसलिये अपने कसूर को कबूल करके तुम्हें अपने तई जरूर बचा लेना चाहिए । मगर तुम जिन्दा रहोगी, तो खुदा तुमको निहायत आरामोचैन के साथ दुनियां में कायम रक्खेगा।"
यह सुन कर मैने कहा,--"जी,अब मुझे दुनिया के आरामोचैन नहीं चाहिएं।"