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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/११४

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खूनी औरत का


उन्नीसवां परिछेद।

भूठा इल्जाम ।

"सधि गगनविहारी कल्मषध्वंसकारी,
दशशतफरकारी ज्योतिषां मध्यमारी ।
विधुपि विधियोमा प्रत्यते राहुणाली,
लिखितमि ललाटे प्रोज्झितं का समर्थः॥"

(नोसिमरी)
 

एक बजने के समय मजिस्ट्रेट साहब इजलास में लाकर बैठे और मैं उनके सामने पेश की गई । मैंने अपनी जिन्दगी में पहिले ही पहिल कचहरी और इजलास देने थे, इसलिये यहांपर मैं उसका कुछ हाल लिखती; पर अदालत-कचहरी बटुलेरों की देखी हुई बीच है, इसलिये उनका वर्णन न करके अब मैं आगे पढ़ती हूं।

हाकिम एक खूब ऊंचे तल के बीचोंबीच रखी हुई कुर्सी पर बिराजे थे और उनके बगल में लाल पगड़ी बांधे पेशकार बैठे थे। मैं खनके सामने-परन्तु कुछ दूर, दोवार से सटे हुए एक 'कठघरे' में जा कर सभी की गई थी और एस ( कठघरे ) के बाहर मेरे अगल-बगल दो कांस्टेबिल खड़े हुए थे । इस कांस्टेबिलों में दयाबान रघुनाथ या शिवरामतिवारी न थे, बरन कोई और ही थे।

अस्तु, अब हाकिम अपना कुछ ओर जरूरी काम कर चुके, तब कोतवाल में उस तख्त के पास जा और हाकिम को सम्बोधन करके यो कहा,-"हुजूर,दौलतपुर में पांच और रसूलपुर में दो खुन जिस नौजवान लड़की ने किए हैं, वह इमारत के सामने पेश की गई है । इसने रसूलपुर में सुपरिन्टेन्डेन्ट-पुलिस और मेरे सामने जो इसहार दिया था, वह गलत था, लेकिन कानपुर की कोतवाली में आने पर इसने अपनी रजामन्दी से