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खूनी औरत का


तिवारीजी के यहां नौकरी करते थे और बड़े आराम से अशमा दिन बिताते थे। इधर पन्द्रह दिन से ऊपर हुआ होगा कि इन्ही तिवारी जी की स्त्री पलेग से मर गई ! हमका क्रिया-धर्म करके तिवारीजी भी मांदे पड़े और फल फी रास सच कर गए । आज-कल मेरे गांव में बड़े जोर-शोर से पलेग फैला हुआ है और गांव के लोग बराबर घर-द्वार छोट-छोड़ कर इधर-घर मागे जा रहे हैं। इसलिए जब तिवारी जी की मिट्टी बहाने गावं के कोई लोग न आए, तो हम्ही चारों हरवाहे इन्हें अठाफर गङ्गो-फिमारे ले गए और उन्हें जल में बहा भाए । जब हमलोग मुर्द को गङ्गा में बहाकर लौटना चाहते थे, तब उन्हीं तिवारीजी की नौजवान और कारी लड़की "दुलारी मिली । पर अब हमलोगों की कहानी उसने यह सुना कि,'उसके पाप योही-बिना जलाए ही, गंगा में बहा दिए गए हैं,'तब वह बड़े जोर से चीख उठी और चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ी । यह देखकर हम लोग इसे उसके घर उठा लाए और एक चारपाई पर लिटा कर आपस में यह सलाह करने लगे कि,'अब क्या करना चाहिए ?'आखिर, कालू की सलाह से हम-तीनों तो अपगे अपगे घर चले गए और कालूस सड़की (दूलारी) की देख-भाल और टहल-चाकरी करने के लिये बहीं । रह गया। अपने दयावान मालिक के मरगे का हमलोगों को बड़ा दुख हुआ था, इसलिये सारी रात हमसभी को नींद न भाई और बड़े तड़के हमलोग अंगे मालिक के मकाम पर पहुंचे। मालिक के मकान पर हमलोग पहुंचे सही, पर यहां जाकर को कुछ हमलोगों ने देखा, उससे हमलोगों के सारे होशहवास गायब हो गए और हमलोग हुजूर के पास दौड़े हुए चले जारहे हैं!"

यहां को पढ़कर कोतवालसाहब फिर यों कहने लगे,-"बस, इतना कहकर जब 'फलगू' चुप होगया, तब मैने उससे यों कहा,--" अच्छा, अब इस के आगे का हाल झट-पट कह जाओ।"