पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१३८

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(१३४ ) खूनो औरत का am- यह बात भी मैं मरमसला पा चुकी हूँ। मेरा तो यही कहना है कि मैं बिहार में उ.सार हूं इसलिये हर दया करके मुभा क्षगाध और निरपराध को को छड़ दें। क्योंकि बेकसूर को दण्ड देना न्यायी हाकिार का काम नहीं है।" मेरी बात सुन कर हानिका ने मेरो मोर फरुणापूर्ण दृष्टि से देखा और यों कहा,-" दुलामी, यह बात तो तुम जामती ही हो कि सात-सात खून हो चुके हैं ?" मैं बोली,-"हां, हुजूर । यह बात मैं जानता हूं।" हाकिम,-" मोर याद हात भी तुम मंजूर की है कि, 'हिरवा नाऊँ का गला तुमगे घोटा'?" , मैं बोली,-"लेफिन मेश इरादा खून करने का तो था नहीं।' हाकिम,-"सुनो. दुलारी ! तुमसे जितना सवाल किया नाय, तुम इसका ठीक ठीक तमा ही जवाब दो।" में,-" बहुत अच्छा । " हाफिम,-" तो हिरवा की जान तुम्हारे ही हाथ से गई " मैं,-"हो, मान ! हाकिम,-" ऐसी हालत में तुमको खून करने के जुर्म में काों म सजा दी जाय ?" मैं,-"हजरत ! यहां पर यह भी तो विधारना चाहिए कि इस समय मेरे मित्त की फसा अवस्था थी ? वा उस समय की अपनी दशा का हाल मैगे शाहगे प्रयाग में नहीं कहा है ? " हाकिम,-"फहा तो है, मगर इन सात-सात खूनों का इलजाम तुम पर लगाया गया है। ऐसी हालत में मैं किस तरह सुम्हें छोड़ सकता हूँ? मैं,-"तप फिर मापके जो जी । आधे, सो आप करें, क्योंकि माप हाकिम हैं। और मैं ? मैं एक हातुच्छ और समाप लड़की है। ऐसी गवस्था में भला में भापकी मरजी के खिलाफ क्या