पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१३७

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सात खून । (१३३ ) - S इक्कीसवां परिच्छेद। . मजिष्ट्रेट। " पदण्ड्याग्दष्टयन् राजा दण्ड्याँश्वाप्पदण्डयन् । अयशो महदाप्नोति नरकं चैव गच्छति ॥" (भगवानमनः) मेरा मामला जप शुरू हुमान कोतवाललाहाकिम के भागे . खड़े होकर यों कहा,-"सूर । इरुन शोरश (मेरी ओर उँगली से सहला कर ) के जिन तीनों फगूधगैरल हरषाओं के हाजिर करणे का दृषम हुजूर से दिया था, ये कल रात को कानपुर की कोतवाली में मर गए, ये तीनों सिर्फ दो दिन से बुखार में कूच कर गप, इस लिये भव सनफा हाजिर करना गैर मुमकिन है। हां, रसूलपुर गांव के रामदयाल धगैग छों चौकीदार हाजिर है। ___या सुम कर हाकिम ( मजिष्ट्रट ) मे उन छओं को अपने सामने बुला फर इन सभी का बयान लिया । मजिष्ट्र ट के एसामने भी एन ( रामदयाल-घगैरह ) यो गे अपने बयान में बेहो बातें कहीं, लो रखूमापुर के थाने पर पुलिस के अंगरेज अफसर के सामने कही थी। इसके बाद हाकिम गे मेरी मोर देख कर यों कहा- दुलारी, तुम्हारा दो फिस्म का बयान मेरे मागे है। अब तुम यह पतलाभो कि सन दोनों में कौन सा सचा और कौन सा . झूठा है ?" यह सुन कर मैगे कहा,-"हुजूर,यह बात तो मैं गरीषपरबर के सामगे कहो चुकी हूं कि, 'मेरा पही ययाम मचा है,जो कि मैंने रखल- पुर के थाने पर अंगरेज अफ़सर के मामने लियाया था। उसके अलाधे, कामपुर की कोतवाली में मैगे अपना कोई बयान नहीं लिखवाया है। कोतवाल साहब ने जो कागज पेश किया है और जिस पर मेरे अंगूठे की छाप है, यह किस किस्म का फागज है,