इक्कीसवां परिच्छेद।
मजिष्ट्रेट।
"अदण्ड्यान्दण्डयन् राजा दण्ड्याँश्चैवाप्यदण्डयन्।
अयशो महदाप्नोति नरकं चैव गच्छति॥"
(भगवान्मनुः)
मेरा मामला जब शुरू हुआ तब कोतवाल साहब ने हाकिम के आगे खड़े होकर यों कहा,—"हुजूर! इस औरत (मेरी ओर उँगली से बतला कर) के जिन तीनों फलगू वगैरह हर गवाहों के हाजिर करने का हुक्म हुजूर ने दिया था, वे कल रात को कानपुर की कोतवाली में मर गए, ये तीनों सिर्फ दो दिन के बुखार में कूच कर गए, इस लिये अब उनका हाजिर करना गैर मुमकिन है। हां, रसूलपुर गांव के रामदयाल वगैरह छओं चौकीदार हाजिर है।
यह सुन कर हाकिम (मजिष्ट्रेट) ने उन छओं को अपने सामने बुला फर उन सभों का बयान लिया। मजिष्ट्रेट के सामने भी उन (रामदयाल-वगैरह) छओं ने अपने बयान में वही बातें कहीं, जो रसूलपुर के थाने पर पुलिस के अंगरेज अफसर के सामने कही थी। इसके बाद हाकिम ने मेरी ओर देख कर यों कहा,—
"दुलारी, तुम्हारा दो फिस्म का बयान मेरे आगे है। अब तुम यह बतलाओ कि उन दोनों में कौन सा सच्चा और कौन सा झूठा है?"
यह सुन कर मैंने कहा,—"हुजूर,यह बात तो मैं गदी अपरषर के सामने कही चुकी हूं कि, 'मेरा यही बयान सच्चा है,जो कि मैंने रसूलपुर के थाने पर अंगरेज अफ़सर के सामने लिखाया था। उसके अलावे, कानपुर की कोतवाली में मैंने अपना कोई बयान नहीं लिखवाया है। कोतवाल साहब ने जो कागज पेश किया है औरजिस पर मेरे अंगूठे की छाप है, यह किस किस्म का कागज है,