पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १३९ )
सात खून।


कोठरी में ही रहना । यहां मेरे पास सिर्फ हींगन रहेगा । क्यों हुजूर ! ऐसा ही इज़हार है न?"

इस पर हाकिम ने कहा,--"हां, यह सही है।,

मैं बोली,--" तो क्यों हुजूर ! उस थानेदार की उन बातो से क्या उसकी बुरी नीयत का पता नहीं लग सकता ?"

हाकिम,-"शायद !"

मैंने कहा,--"मैं तो यही समझती हूं कि उस थानेदार ने मेरी गाड़ी और बैलों की जोड़ी को भी गायब किया और मेरा “धर्म भी बिगाड़ना चाहा,

हाकिम,--"अच्छा, फिर ?"

तब मैंने हाथ जोड़ कर यों पूछा, "हजूर ! यद्यपि अबदुल्ला और हींगन को मैंने खुद कभी नहीं मारा है; वरन मैने तो खून खराबा करने से हींगन को भी रोका था; जैसा कि मैं अपने बयान में कह आई हूं। लेकिन थोड़ी देर के लिये अगर यह मान भी लिया जाय कि अपने धर्म बचाने के लिये मेमे उन दोनों बदकारों को मारा या मरवा डाला, तो इसमें क्या बुरा किया ? क्यों कि स्त्रियों के पास सतीत्व से बढ़कर कोई धन नहीं है और फिर यह धन भी ऐसा विचित्र है कि यदि एक बेर यह लुट जाय तो जीतेजी फिर कभी नहीं मिल सकता । बल, गया, सो गया, ऐसी हालत में अपने अनमोल प्रतीत्वधर्म की रक्षा के लिये स्त्रियां न जाने क्या क्या कर डालती हैं !,

मेरी इन लम्बी चौड़ी बातों को सुनकर हाकिम ने कहा,--"अब यह बात तुम जज साहब के आगे कहना । भला, इतने ऐच-पेच के साथ तुमने खून करना मंजूर तो किया ! खैर, तुम्हें अब दौरे सुपुर्द करता हूं। वहां पर जज साहब के आगे जो कुछ तुमको उज़ करना हो, सो करना; क्योंकि मैं तुमको बेकसूर छोड़ देने की ताकत नहीं रखता।"