पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१५

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सात खून।



जेलर साहब के साथ चले गए, और जेलर का वह आदमी "रतन" उन कुर्सियों को उठाकर लेगया।

वे दोनो जब चले गए, तब मेरे मन में तरह तरह के खयाल उठने लगे, और मेरे सिर में ऐसे ऐसे चक्कर आने लगे कि मैं फिर बैठी न रह सकी और अपना माथा पकड़कर धर्ती में लेट गई। कबतक मैं उस हालत में रही, इसकी तो मुझे कुछ सुध नहीं रही, पर जब दीयाबले एक कांस्टेबिल ने आकर मुझे पुकारा तो मैं चैतन्य हुई । फिर वह कांस्टेबिल मुझे दूध देने लगा, पर उस समय मेरा जी इतना बेचैन होरहा था कि मुझसे यह भी न पीया गया। हां, मैंने थोड़ासा ठंढा पानी जरूर पी लिया और इसके बाद मैं धर्ती में पड़े हुए कम्बल पर पड़ी रही । सारी रात मैंने बड़े बुरे बुरे सपने देखे और सबेरे जब मुझे एक कांस्टेबिल ने आकर खूब जगाया, तब कहीं मेरी नींद खुली।

सबेरे दो हथियार बंद कांस्टेबिल और चार कैदी औरतों के साथ जाकर मैं मामूली कामों से झुट्टी पा आई और फिर अपनी कोठरी में बैठी हुई जासूस और बारिस्टर की बातों पर गौर करने लगी। मैंने मन ही मन यों सोचा कि, ' वास्तव में जासूस भाई दयालसिंहजी बड़ी भारी ताकत रखते हैं और मेरे वे बारिष्टर साहब भी खूब ही बोलना जानते हैं । अतएव यह खूब सम्भव है कि ये दोनों जबरदस्त आदमी जब एक हुए हैं, तब अवश्य ही मुझे छुड़ा लेंगे; परन्तु फांसी या जेल से छुटकारा पाकर मैं क्या करूंगी, कहां जाऊंगी, किसके द्वार पर खड़ी होऊंगी और कौन मुझे अपनावेगा ?