बड़ा समझदार लड़का हा, इसलिये इन व्यर्थ की बातों को तुम अपने जी से दूर करो और अपना चित्त ठिकाने करके मेरे आगे अपनी कहानी जरा दुहरा डालो।"
इमपर मैं कुछ कहना ही चाहती थी कि इतने ही में जेलर साहब वहां आगए और उन्होंने जासूस साहब और बारिस्टर साहब की ओर देखकर यों कहा,---"क्यों, साहबों चार तो बज गए और अब सिर्फ़ एक घण्टा यहां पर आपलोग और ठहर सकते हैं, क्योंकि पांच बजे के बाद फिर यहां पर कोई भी नहीं रह सकता।"
यह सुन और अपने जेब में से एक कागज निकाल कर भाई दयालसिंहजी ने जेलर साहय के हाथ में दिया और कहा,--- "लीजिए, इसे पढ़कर मुझे वापस कीजिए । "
यह सुन और उस कागज को अपने हाथ में ले सथा पढ़ने के बाद उसे लौटाकर जेलर साहप ने बड़ी नम्रतासे भाई दयालसिंहजी से कहा,---"ओहो! तो अबतक इस हुक्मनामे को आपने मुझे दिखाया क्यों नहीं ? खैर, यह आपके बड़े साहब का हुक्मनामा है और इसपर मजिष्ट्रेट साहब की भी सिफ़ारिश है । बस, अब आप तनहां, या अपने किसी साथी के साथ जबतक चाहें, जेल के अन्दर रह सकते, और जब चाहें, तभी आकर कैदी से बातचीत कर सकते हैं।"
जेलरसाहब की बातें सुनकर मैं मनहीमन भाई दयालसिंह की ताकत का अन्दाजा लगाने लगी और उन्होंने जेलरसाहब से कहा,---"लेकिन फिर भी, अब इस समय हमलोग जाते हैं । कल हमलोग सुबह ग्यारह बजे आवेंगे और शामतक रहकर इस कैदी औरत ( मेरी तरफ इशारा करके ) का इजहार लिखेंगे।"
यो कहकर भाई दयालसिंहजी उठ खड़े हुए और उनके साथ ही साथ बारिस्टर साहब भी खड़े होगए । फिर वे दोनों