पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१५६

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(१५२) खूनी औरत का emam- बजाने लगी, पर मुझे नींद न आई और मैं पड़ी पड़ी पुन्नी की घेढंगी. छेड़ छाड़ पर गौर करने लगी कि, 'क्या, भगवान् की ऐसी ही इच्छा है । यह मैं सुन चुकी हूं कि ये विलायत से लौटे हुए बारिष्टर साहब मेरी जाति के हैं, और यह भी मुझे मालूम होगया है कि जेल से छूटने पर मेरे जाति भाई अब मुझे कभी नहीं अपना- वेगे। तो फिर मैं यहां से यदि छुटकारा पाजाऊं तो कहां पर खड़ी . होऊंगी और किलको होकर रहूंगी? यह बात मुझे मालूम है कि मेरी जाति के जो लोग विलायत जाकर लौटे हैं, वे बिरादरी से खारिज कर दिये गये हैं और इधर में भी अब जेल से छुटने पर जात पांत में नहीं खड़ी होने पाऊंगी। तब फिर वैसी दशा में में। क्या करूंगी ! क्या नारायण ने मेरे लिये वैसाही विधान किया है। कि मैं भी उन्हीं लोगों में जाकर मिलूं, जो जाति से बाहर करदिये गये हैं !!! खैर जो भगवान ने ठीक कर दिया होगा, वही होगा; पर अभी फांसी की तखती से तो पिंड छुटै!" .. इसी तरह की उधेड़बुन में देर तक मैं डूबी रही, इसके बाद नींद महारानी ने कब मुझे अपनी मुलायम गोद में ले लिया, इसकी मुझे कुछभी सुध-बुध न रही। T a matectioncommar