खूनी औरत का- (१६२ ) छब्बीसवां परिच्छेद। जैसे को तैसा। PLEASER BIHAR । "खलानां कण्टकानां च, द्विविधैव प्रतिक्रिया । उपानन्मुखसंगों वा, दूरता वा विसर्जन ॥" ( सुभाषितम्.) यह रात बड़े मजे में कटी और मैंने पुन्नी और मुन्नी को यह बात भली भांति समझा दी कि काने-कलूट लूकीलाल के मुंह में किस तरह लूका लगाना चाहिए। दूसरे दिन, बारह बजे के समय जेलर साहब हम तीनों को एक कोठरी में ले गए। वहां एक आलमारी की आड़ में में छिपकर खड़ी होगई और पुन्नी-मुन्नी ज़मीन में बैठ गई। तब जेलर साहब ने लूकीलाल को बुलाकर उससे कहा,-“सिर्फ पाद्रह मिनट का समय आपको दिया जाता है।" ____ यों कहकर जेलर साहब जरा हटकर टहलने लगे और लूकी., लाल ने मोछों पर ताव दे और बहुत ही बुरी तरह घूर कर उन दोनों बहिनों से यों कहा,-'कहो, बीबियो ! क्या हाल चाल है !, यह सुन मुन्नी तो कुछ न बोली, पर पुन्नी ने यों कहा,- " हाल भी अच्छा है, और चाल भी ठीक है।, लूकी-"हूँ ! कहो, अब क्या इरादा है ? पहिली अप्रैल को तुम दोनों छूट जाओगी । बोला अबतो मेरी दिली ख्वाहिश तुम दोनों पूरी करोगी न ?,, -पुत्री ने कहा,-" भला, यह तो बताओ कि तुमने मेरी कोठरी में घुसकर अपनी चांदी की डब्बी क्यों रखदी थी?" मला कर । ime