पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१६७

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सात खून।

लूकी,--"ओही ! इस बातको तुम अब तक न समझी ? लाहौल बिला कृवत ! अजी बी! अगर मैं उस डिब्बी को न रखता तो तुम दोनों के सब्जकदम इस जेल की कोठरी को कैसे जीनत देते । मगर खैर, बिल्फल सा इतना ही हुआ है, लेकिन अगर अबकी बार भी जो तुम दोनों ने मेरी दिली आरजू न पूरी की तो देखना,--फौरन से पेश्वर तुम दोनों हिन्दुस्तान के बाहर किसी टायू को मिट्टी खोदती नज़र आओगी और अपनी फूटी किस्मत को रो रो कर वहीं पर अस्मत गंवाागी, फिर पछताओगी और भरो जवानी में योंहो मर मर जाागो । बोलो, जल्द बोलों कि अब तुम दोनों का क्या इरादा है ?"

इतना सुनकर मुन्नी रिस में भरकर यों बोली,--"सुन बे कमीने कहीं के ! उस बार तो मैंन तेरा सिर ही तोड़ा था पर अबकी बेर जो तूने जरा भी पाजीपन किया ता तेरी इस पकौड़ी सी नाक को मैं दोनों से काट लूंगी और तर मुंह पर पांच पैजार मारकर अश्ववारों में यों छपवा दूगी कि मैंन लूकी के मुंह में लूका लगा दिया। क्यों, अभी आया तेरी समझ के अन्दर या नहीं । चल हट कर हो ओर जा. यहां से अपना मुंह काला कर । पाजी ! बहया !! कमीना!!!"

इतना सुनते ही लुकीलाल भभक उठा और ताव पेच खाकर यो कहने लगा,-"अच्छा, हरामजादियों ! तुम दोनों ज़रा जेल से तो निकलो। फिर देखना कि किस बदी के साथ तुम्हारी अस्मत के दामन तार तार किये जाते हैं और किस तरीके से तुम फीजी टापू को रवाना की जाती हो।

“जा, जा, दूर हो, यहाँ से, दोज़खी कुत्ते !,, यों कहकर मुन्नी ने उसके चेहरे पर थूक दिया । बस, फिर तो लूकीलाल ऐसा झरताया कि उसने पुन्नी और मुन्नी को दो चार घुसे रसीद कर दिये । इस पर वे दोनों बड़े ज़ोर से चिल्ला उठीं और जेलर साहब ने जेल क सिपाहियों को बुलाकर लूकीलाल को हथकड़ी भरी और उसे मजिस्ट्रेट के इजलास में भेजदिया।